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________________ 420 तो मनराज तमने सोगठे रमाडीये, सोगठे रमाडीयेने मनडा मनावीओ. म० ||१६|| बोधीबीज बाजीयोने समभाव सोगठा, चतुराई चोपाट पथरावुं हो. म० ||२०|| कहो तो मनराज तमोने कबजामां लावीओ, कबजामां लावीओने मनडा मनावीओ. म० ||२१|| मनरुपी घोडोने सद्गुरु लगाम, उपदेश अंकुश धरावुं हो. म० ||२२|| अध्यात्म आरसीने तत्व रमणता, आत्म स्वरुपमां जमावीओ...हो. म० ॥२३॥ धीर विमल कहे मनवश करीये, मनवश करीओने शीवसुख वरीओ. म० ||२४|| मनवश करवामां श्रुत केरी सांकल, मुक्तिना मारगडे बोलावुं हो. म० ॥ २५॥ (8) श्री जिन प्रतिमानुं स्तवन : ओ जिन प्रतिमा पूजो मेरे प्यारे से जिन प्रतिमा पूजो, अ जिन प्रतिमा पूजो, अ जिन प्रतिमा पूजो, मेरे प्यारे जगमां देवन दुजो मेरे प्यारे.. अ जिन० ॥१॥ करजोडी जिन प्रतिमा वंदो, ठाणांगने अनुसारे, ठवण नीक्षेपानी रचना कहीशुं, गुरुगम विधि आधारे ॥ २॥ श्री जिन प्रतिमा जिनवरे सरखी, जिनवर गणधरे भाखी, मुनिवर सुस्वर वंदनपूजा, अनेक सूत्र छे साखी ॥३॥ जंघा विद्या चारण मुनिवर, यात्रा करवा जावे, पांचमे अंगे भगवती सूत्रे, वीसमे शतक दीखावे. || ४ || सुर्याभदेव जिन प्रतिमा पूजी, राय पसेणी भाखे, विजयदेव जिन प्रतिमा पूजी, जीवा भीगमें दाखे.. ॥५॥ इंद्रादिक सर्व देव मळीने, स्वर्ग विमाने देखो, जिनेश्वरनी दाढा पूजे, जंबुपन्नतीमें पेंखो. ॥६ || सिद्धारथ राजा त्रिशला राणी, निरमल समकित धारी, अष्ट द्रव्य शुं पूजा कीधी, कल्पसूत्रे अधिकारी ॥७॥ संप्रति राजा धरमनो धोरी, त्रणखंड कीर्ति व्यापी, सवा लाख जिन दहेरा कराव्या, सवा क्रोड जिन बिंब स्थापी ॥८॥ अष्टापद गिरि भरत नरेश्वर, बींब चोवीशी स्थापी, आवश्यक सूत्रे गणधरे भाखी, तोही नमाने पापी. ॥६॥ अभयकुमारे जिन प्रतिमा भेजी, आर्द्रकुमार बोध पायो, चारित्र लईने मुक्ति उंधो पाम्यो, सुयगडांग पाठ दिखायो ||१०|| मनो मतिशुं कुमति बोले, राह बतावे, शाहुकार जन नाम धरावे सूत्र आधार दिखावे. ॥११॥ गृह वासमां वसतां जिनवर, जिन प्रतिमा नित्य पूजे, छट्टे अंगे मल्ली जिनेश्वर, अह अधिकारे सुझे ||१२|| जिनवर बिंब विना नवीपुंजुं, आनंदादिक बोले,
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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