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________________ 422 संवाद...सज्जन० ॥१॥ बाईजी शिखर महोरा बंधावीयाजी रे, बारणां नीचां कीधां रे, साभळी सासु रीश चढावी, वहुने महेणां दीधां रे सज्जन० ॥२॥ ते वहु तमारे होंश होय तो, पियरथी द्रव्य मंगावोरे, नाना मोटा समजीने वळी, मोटा शिखर बंधावो रे...सज्जन० ॥३॥ सासुना महेणां उपर वहुओ, पियरथी द्रव्य मंगाव्यारे, नाना मोटां समजीने वळी, मोटा शीखर बंधाव्या रे...सज्जन० ॥४॥ पांच वरसमां बावन जिनालय, देवी कीर्ति बनावीरे, संवत सोळ पंचागुंजे वहुआ, मोटी मुर्ति बनावी रे सज्जन० ॥५॥ तपगच्छाधिपतिश्री हिरसूरिश्वर, ते पण तिहां आवे रे, रत्नतिलक प्रासाद करावी, उत्तम नाम सुहावे रे सज्जन० ॥६।। ___ (10) आठ कर्मनी प्रकृतिनुं स्तवन आठ कर्मोकी कुंजमां हुं भुली पडी...हां हां मतिश्रुति अवधिने मन पर्यव; केवळ विना शुद्धि जरा न पडी १. चक्षु अचक्षु अवधि केवल, ओ चारे पांच निंद्रा मळी दर्शनावरणी शाता अशाता, वेदनी ओ बे छे, तेणे जीत्यो पंचेन्द्रिय दमन करी २. क्रोध मान माया लोभ ओ चारे, सोळ रुप करी मने घेरी लीधी नवनोकषाय त्रण-दर्शन मोहनीय, लालच देखाडी मने लंटी ३. लीधी-देव मनुष्यने गति तिर्यंचनी चोथी नरकमां मने लीधी ठवी,-चार गतिने पंचेन्द्रिय जाति, आठ शरीरमां, मने जडी लिधी, ४. संघयण संस्थान बारे मळीने,-संघातन बंधनथी मने बांधी लीधी,-वर्ण गंध रस स्पर्शे चारे, विग्रह गतिमां चार अनुपुर्वी ५. शुभ-अशुभ बे गति विहायोनी, ओ पंचोतेर प्रकृति छे पिंडनी, आठ प्रत्येक त्रसदशदिसे स्थावरनी, ओकसो त्रण नाम कर्मे मने चीतरी ६. कोई कहे उचने कोक कहे नीच, गोत्र कर्मनी गति छे न्यारी, दानलाभ भोग उपभोग अंतराय वीर्य, अंतराय मारी शक्ति हरी ७. उत्तर भेद १५८ अकर्मना, टूकमां हुं फसी पडी, चार घातिने चार अघाति, घाति जीतेथी थाय केवळी, घाति जिते अघाति जीते, न्याय वरे जई शिवसुंदरी,...८. (11) चोवीश भगवाननां परिवारनुं स्तवन राजा राणीने कुटुंब घj, मन मोहन मेरे, दिपती कुंवरोनी जोड रे -
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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