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________________ 400 दुःखबहु दीधां, गालो भांडी तने भारी ।। हो नाथ० ॥५॥ अंते हितोपदेश आपीने तेहने, कीधो अल्प संसारी ॥ हो नाथ० ॥६॥ जमालीजे तुज साथे झगड्यो, अलिकं वचन उच्चारी ॥ हो नाथ० ॥७।। पंदरभवमां तेने पण कीधो, प्रभु अमृतपद अविकारी ॥ हो नाथ० ।।८, इंद्र जालीयो कहेतो जे आव्यो, इंद्रभूति अहंकारी । हो नाथ० ॥६॥ तेने पोतानो वजीर बनाव्यो, धुर गणधर पदधारी । हो नाथ० ॥१०॥ पापी अर्जूनमाली प्रमुखने, आपे दीधां उगारी ।। हो नाथ० ॥११॥ मार्गेस्थिर कर्यो मेघकुमारने, पूर्व भव संभारी ।। हो नाथ० ॥१२॥ अडदना बाकुलाने लेइ अरिहा, चंदनबालाने तें तारी ॥ हो नाथ० ॥१३॥ जिन माणेक हवे तारी मुजने, करम-भरम संहारी ॥ हो नाथ० ॥१४॥ (22) श्री महावीर जिन स्तवन (आनंद मंगल गावो) सौ चालो भविजन जईये, महावीर भेटी लहीये, पावापुरी मुक्तिनुं रुडु स्थान छे ॥१॥ श्रीवीर प्रभुना पगलां, अष्टकर्मथी अलगां, मगधदेशे, शुद्ध भूमिर्नु विश्राम छे, ॥२॥ तिहां हस्तिपाल राजा, सुरलोके गुण अवाजा, मनमां समरे, महावीर केरां नामने ॥३॥ कुरकुनकनी जीरणशाला, सुंदर गुणोनी ते माला, शुद्ध प्रदेशे मुक्तिवरवानु, रुडुमान छे ॥४॥ मंदु संवत्सर आवे, कार्तिकमास मनमां लावे, अमावास्या, रात्रीमां शुक्लध्यान छे, ॥५॥ अढार देशना राजा, न मूके विवेकके माजां, मोक्षसमये, पौषह करे शुभ भावथी, ॥६॥ साधु चौदहजार, वली गणधर छे अगीयार, गौतम मोटां श्री वीरतणो परिवार छे, ॥७॥ साध्वी छत्रीश हजार, गुणोनोओ अवतार, चंदनबाला, श्रीवीरतणो परिवार छे, ॥८॥ ओगणसाठ हजार, एकलाख उपरसार, शतक श्रावक, श्री वीरतणो परिवार छे, ॥६॥ त्रणलाख श्राविकासारी, अढार हजार मनमां धारी, रेवती मोटी, श्रीवीरतणो परिवार छे, ॥१०॥ चुमालीशसौ ब्राह्मणना, इंद्रभूति स्वामी जेना, वीर उपदेशे, यज्ञने छोडे जाणीपापने ॥११॥ अपापापुरी कहावे, वीर प्रभुजी मुक्ति जावे, पावापुरी, भक्तों बोले एवानामने ॥१२॥ पद्मासने बेठावीर, देशना आपे, गंभीर, सोलपहोर भावे, वस्तु स्वभावने, ॥१३॥ पंचावन पुण्यकेरां पंचावन पापनांकेरां, फल प्रकाशे, उतराध्ययन प्रकाशतां ॥१४॥ देव
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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