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________________ 399 हवे कोण छेदशेजो, दहाडा दोहिला जायजो, वीतराग भावने भावतांजो, निज आतमनी मायजो ॥१४॥ चढीयां गौतम ध्यानमांजो, पाम्यां केवलज्ञानजो, देह दहन करी वीर-जो, पहोंच्या देव विमानजो ॥१५॥ उत्तम दिन छे आजनोजो, करो ज्ञान दिवायजो, अलस आलश काढीनेजो, पौषध करवां सदायजो ॥१६॥ वीर वजीर दीपमालीकाजो, गातां पुरेमन कोटजो, हीरविजय गुरु हीरलोजो, लब्धिविजय कहे करजोडजो ॥१७।। (29) श्री महावीर जिन स्तवन चालोने प्रीतमजी प्यारा, वीर वंदन जइयेरे, ॥ वीरवंदन जइयेरे व्हालावीरवंदन जइयेरे, ॥१॥ बार वरस दुष्करतपतपीयां, सकल कर्मने वारीरे ॥ वैशाख सुदी दशमी दहाडे, आपदशाभाली, ॥ चालोने० ॥२॥ केवलज्ञानने केवलदर्शन, तेरमें गुणठाणे, ॥ गुण अनंता प्रगट्यां प्रभुने, भूतभविष्य जाणे, ॥ चालोने० ॥३॥ मुंभीक गामथी बार योजनपर, गणधरनो छे ठाम, ॥ रातोरात प्रभुजी पधार्यां, महसेन वननाम, ॥ चालोने० ॥४॥ माधवसित एकादशी दिवसे, सुरपति अति हरखे, ।। समवसरणनी रचना कीधी, प्रभु अमृत वरसे, ॥ चालोने० ॥५॥ आठ देवने चार मानवनी, पर्षदाएबारे; ॥ निजनिज भाषाए सहु समजे, प्रभुगुण दिलधारे ॥ चालोने० ॥६॥ वृक्ष अशोकनी छांया गहेरी, सिंहासन राजे, ॥ देवतणां तिहांवाजा वागे, भामंडल छाजे, ॥ चालोने० ॥७॥ शिखर हाथदीये जब प्रभुजी, करुणारस भावे, ॥ गणधर पूरवधर लब्धि, प्रगटे शुभदावे, । चालोने० ॥८॥ त्रीश वरस लगे केवल पामी, जग जन उद्धरिया ॥ दीपविजय कविराज प्रभुजी, अविचल पदवरिया ।। चालोने० ।।६।। (21) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : मथुरामा खेल खेली) वीरतारी जाउं बलिहारी, हो नाथ जग उपकारी ॥ संयम लेइ परिषह बहू सहीया, बार वरसतपकारी ॥ हो नाथ जग उपकारी ॥१॥ अपराधी प्राणी पण ऊधार्यां, अनुकंपा उरधारी ॥ हो नाथ० ॥२॥ चंडकौशीयो डसीयो तुज चरणे, क्रोधातुर भयकारी ॥ हो नाथ० ॥३॥ आत्म अजराअभय तस आप्यु, शिखामण देइ सारी, ॥ हो नाथ० ॥४॥ द्रोही गौशाले
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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