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________________ 360 प्रभु तेहीज देशी दाखो, तोपण लिन छुटे...शंखेश्वर मोहना रंगीला हमारा, तुंज साहिब प्रभु हुं मे तुज बंदा, प्रीतबनी छे जैसे कैरव चंदा...शंखेश्वर मंडन० ॥२॥ तुजशुं नेह नहीं मुज काचो, घणही न भांजे हीरो जाचो, देतातो दान प्रभु कांई विमासो, लागे छे मुज मन अहि तमासो...शंखेश्वर मंडन० ॥३॥ केडे लाग्यां ते प्रभु केड न छोडे, दीओ वांछित सेवक कर जोडे, अखय खजानो प्रभु तुज नवि खूटे, हाथ थकी तो प्रभु शुं नवि छुटे...शंखेश्वर मंडन० ॥४॥ जो खीजमतमां खामी दाखो, तोपण निज जाणी हित राखो, जेणे दीधुं छे. प्रभु तेहीज देशे, सेवा करशे ते फळ लेशे...शंखेश्वर मंडन० ॥५॥ धेनु कुप आराम स्वभावे, देतां देतां प्रभु संपति पावे, तो प्रभु मुजने जो गुण देशो, तो जगमां जस अधिको वहेशो...शंखेश्वर मंडन० ॥६।। अधिकुं ओर्छ प्रभु कीशुं कहावो, जिम तिम सेवक चित्त मनावो, मांग्या विना तो प्रभु माय न पीरसे, उखाणो साचो ज दिसे...शंखेश्वर मंडन० ॥७॥ अम जाणीने प्रभु विनति कीजे, मोहनगारा मुजरो लीजे वाचक जश कहे खमीय आसंगो, दीओ शिवसुख धरी अविहड रंगो...शंखेश्वर मंडन० ॥८॥ (6) पार्श्वनाथ जिन स्तवन अखीयां हरखन लागी, हमारी अखियां हरखण लागी. दरिसन देखत पास जिणंदको, भाग्य दशा अब जागी...हमारी० ॥१॥ अकल अरुपी ओर अविनाशी, जगमे तुंही निरागी ॥२॥ सुरत सुंदर अचरज एहि, जगजननें करे रागीहमारी० ॥३॥ शरणागत प्रभु तुम पय पंकज, सेवना मुज मन जागी. हमारी० ॥४॥ लीलालहेरे दे पदवी तुमारी, तुम समको नहीं त्यागी हमारी० ॥५॥ वामानंदन चंदननी परे, शीतल तुं सोभागी...हमारी० ॥६।। ज्ञान विमल प्रभु ध्यान धरता, भव भव भावठ भांगी. हमारी० ॥७॥ - (7) पार्श्वनाथ जिन स्तवन कोयल टहुकी रही मधुवनमें, पार्थ शामलीया वसो मेरे दिलमें. ॥१॥ काशी देश वाराणशी नगरी, जन्म लियो प्रभु क्षत्रियकुलमें,...कोयल० ।।२।। बालपणामां प्रभु अद्भुत ज्ञानी, कमठको मान हों ओक पलमें...कोयल०
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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