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________________ 359 (3) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : हो राज रे नावडीना पाणी) जिनराज रे श्री शंखेश्वर प्रभु पास, मारी विनंती मानो खास, करो मुज हैयामां वास, मने दर्शन द्यो अकवार० ॥१॥ जिनराज रे ताहरी मुरति मोहनगारी, सहु कोईना दिल हरनारी, तारो महिमा अपरंपारी...मने० ॥२॥ जिनराज रे तारी सुरतरु जेवीछाया, छे पुनित तारी काया, मने न गमे बीजानी माया...मने० ॥३॥ जिनराज रे हुं रागी तुं छे निरागी, तारा दर्शननी लगनी लागी, मारा भवनी भावठ भांगी...मने० ॥४॥ जिनराज रे हुँ कहुं ओक वात मारी मानो, तारी पासे छे गुणनो खजानो, मने आपो तो नही खुटवानो...मने० ॥५॥ जिनराज रे तारी आंगी अनुपम चळके, कांई झगमग झगमग झळके, निरखीने मनई मलके...मने० ॥६॥ जिनराज रे तं मारो अंतरयामी, भवोभव मुज होजो स्वामी, तने प्रणमुं छु शिरनामी मने० ॥७॥ जिनराज रे दुर दुरथी यात्रिक आवे, भक्ति भावे गुण तारा गावे, सम्यक् दर्शन पद पावे...मने० ॥८॥ जिनराज रे तारा दर्शननी बलीहारी, अमने ल्यो भवथी उगारी, कहे पद्मविजय सुखकारी...मने० ॥६॥ (4) पार्श्वनाथ जिन स्तवन । ॥१॥ तारा नयनां ते प्याला प्रेमना भर्या छे प्रेमना भर्या छे अमी छांटणा भर्या छे, दयारसना भर्या छे, अमीरसना भर्या छे, दयारसना भर्या छे, तारा० जे कोई ताहरी नजरे चढी आवे, कारज तेहनां तें सफल कर्या छे. तारा० ॥२॥ प्रगट थई पातालथी प्रभु ते, जादवना दुःख दुर कर्या छे तारा० ॥३॥ पन्नगपति पावकथी उगार्यो, 'जनम मरण भय तेहना हर्या छे० ॥४॥ पतित पावन शरणागत वत्सल, दर्शन दीठे मारा चित्तडां ठर्या छे. तारा० ॥५॥ श्री शंखेंधर पार्थ जिनेश्वर, तुज पद पंकज आजथी धर्या छे. तारा० ॥६॥ जे कोई तुजने ध्याने ध्यावे, अमृत सुख तेणे रंगथी वर्या छे. तारा० ॥७॥ (5) पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥१॥ शंखेश्वर मंडन, पार्थ जिणंदा प्रभु वामाजीको नंदा, प्रभु पार्थ जिणंदा, अरज सुणो टालो दुःखदंदा, साहिबा रंगीला हमारा,
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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