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________________ 361 ॥३॥ नाग निकाला काष्ठचिराकर, नागकुं सुरपति कियो ओक छिनमें... कोयल० ॥४॥ संयम लइ प्रभु विचरवा लाग्यां, संयम भींज गयो ओक रंगमें, ॥५॥ समेतशिखर प्रभु मोक्षे सिधाव्यां पार्श्वजीको महिमा तीन जगतमें...कोयल० ॥६।। उदयरतनकी ओही अरज है, दिल अटक्यो तोरा चरण कमलमें...कोयल० ॥७।। • (8) पार्श्वनाथ जिन स्तवन मन मीठडी मूरति प्यारी, दिल दिठडी ज्योति झगारी० नेक नजर करी सांइ सलूणा, सुणीओ अरज हमारी; व० चरण शरण प्रभु पास हुँ आयो, नेह करण हुंशीयारी० व०दि०. ॥१॥ नेहनवल में पगपग कीनो, लीनो प्रेम कटारी; व० दीनो तन-धन प्राणमें अपना, पण सवि मिली मे गमारी. व०दि०. ॥२॥ नयन नचावे वचन हसावें, स्वारथीया संसारी व० देवी देवा भवो भव सेव्या, पूरण प्रेम विचारी. व०दि०. ॥३॥ आदे सनेहि अंते विछोहे, देखत नेह निवारी, पारसनामा पूरणकामा नेहकीरीत हे न्यारी; व०दि०. ॥४॥ रंग मजीठमें राग भाग हे, घण कुट्टण दुःख भारी; व० पण वीतरागशुं राग करंता, मणि फणिधर विषहारी. व०दि०. ॥५॥ पारस संगे कंचन लोहा, नेह अचल निरधारी; व० कहिले म देशो छेह सनेहा, वीरविजय जयकारी व०दि०. ॥६॥ (9) पार्श्वनाथ जिन स्तवन रुमझुम रुमझुम घूघरी वागे, हाथे उछाळे दडियाजी, पूनमचंद सम मुखहुं मलके, आंखलडी अणियालीजी, शेरीमाहे रमता देख्यां, पार्धकुमार नानडीयाजी,...रुमझुम० ॥१॥ कमलनाल तणी परे बाहलडी, आंगळीओनी फळीयाजी, शिरपर टोपी सोहे अणीयारी, काने कुंडल वांकलडाजी रुमझुम० ॥२॥ हैये हार अनुपम बिराजे, केडे कंदोरो जडीयो जी, नाना कता ओढणी ताणे, इन्द्रनी केडे चडीयाजी रुमझुम० ॥३॥ सवेरे उठी निशाळे जावे, हाथमे पाटी खडीयाजी, इन्द्रतणा शंसयने टाळे, सर्व शास्त्र आवडीयाजी रुमझुम० ॥४॥ शेरी मांहे हरता फरता, पीवे रस शेलडीयाजी, सरखे सरखी टोळी मळीने, वाटे छे सुखडीयाजी रुमझुम० ||५|| पार्थ प्रभु
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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