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________________ 227 सुख मां हस्यो छु, हुं दुःखमां रड्यो र्छ संसाररूपी जे समुद्र, भवजल रूपी जे नाव, रझळी रह्यो छु वचमां, हवे पार तु लगाडे ॥३॥ समकित रूपी जे मार्ग, कृपा करी बताव, मुजने जेवी समाधि, तमने, ओवी समाधि, अमने, धुन आदिजिन लगावो, मारा हृदयमां स्वामी तनथी कहु छु तुजने, मनथी कह छु तुजने ॥४॥ चारगतिने कापो, आठ कर्मोने टालो, शांति सुधा वरसावो, आत्मरुपी जिवनमां, चोराशी लाख योनीमां, चौदराज त्रण भुवनमां, कोई थी न राखु वेर, सहु जिवने सम गणजो, संवत्सरिना दिवसे, हीरविजय सौ खमावे, खमावे सौ जिवोने ॥६॥ (31) श्री शत्रुजय विनति पामी सुगुरु पसाय रे, शत्रुजय धणी, श्रीरिसहेसर विनवू ....।।१।। त्रिभुवन नायक देव रे, सेवक विनती, आदिधर अवाधारी ओ ओ...॥२।। शरणे आव्यो स्वामी रे, आ संसारमां, विरुओ वैरी ओ नडयो अ,...॥३॥ तार तार मुज तात रे, वात की शी कहुं, भवो भव मे भावठ तणीओ...॥४॥ जन्म मरण जंजाल रे, बाल तरुण पणु, वळी वळी जरा दहे घणुं अ...॥५॥ किमहिन आव्यो पार रे, सार हवे स्वामी, शे नकरो ओक माहरी ओ, तार्या तुमे अनेक रे, संत सुगुण वली, अपराधी पण उधर्या ओ...॥७॥ तो अक दीन दयाळ रे, बाल दयामणो, हुं शा माटे विसर्यो ओ...॥८॥ जे गिरुआ गुणवंतरे, तारो तेहने, तेहमांहे अचरिज किश्यु अ...॥६॥ जे मुज सरिखो दिन तेहने, तारता, जग विस्तरसे जस घणो ओ...॥१०॥ आपद पडीयो आज रे, राजतुमारडे, चरणे हुं आव्यो वहीओ...॥११॥ मुज सरिखो कोई दीन रे, तुज सरीखो, प्रभु जोता जग लाभे नहीओ...॥१२॥ तोये करुणा सिंधु रे, बंधु भुवनतणां, न घटे तुम उवेखवू ....।।१३।। तारण हारो कोई रे, जो बीजो होवे, तो तुमने शाने कहुं ओ...॥१४॥ तुहि ज तारीश नेट रे, पहेलाने पछे, तो अवडी गाढीम कीसी जे; ॥१५॥ आवी लाग्यो पाय, रे, ते केम छोडशे, मन मनाव्या विण हवे अ; ॥१६॥ सेवक करे पोकार रे, बाहिर रह्या जस, तो साहिब शोभा कीसी मे; ॥१७॥ अतुली बल अरिहंत रे, जगने तारवा, समरथ छो स्वामी तुमे अ...॥१८॥ शुं आवे छे जोर रे, मुजने तारतां, के धन बेसे छे किश्यु
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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