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________________ 226 (28) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग : जरा पाछु वाली जोने) आण मिलावे रे कोई आण मिलावे (२) ऋषभ जिनेश्वर आण मिलावे मरुदेवी भरत को वचन पठावे रे हां (२) ऋषभ० (१) खबर न लावे मुज नंदन केरी तुं तो षटखंड पृथ्वी आण मनावे ऋ० (२) भरत कहे आई अमे सुत तेरा, आई कहे मुज चितडुं नचावे ऋ० (३) फळ सहकार केरी जस मन इच्छा, आई देखी ते तो तृप्ति न पावे ऋ० (४) वरस सहस अंते केवल पामी, पुरिमताल नगरे प्रभुजी पधारे ऋ० (५) तप वन पालक भरत भुपतिने, जास वधाई वचन सुणावे, गज खंधे मरुदेवी बेसाडी, ऋद्धिदेखावन वंदन जावे, ऋ० (६) निर्मोही सुतनी ऋद्धि देखीने, मोह तिमिर तब सब मीटजावे, ऋ० (७) ज्ञानविमल की ज्योति झळाहळ, सुत पहेला आई शिवगति पावे, ऋषभ जिनेश्वर आण मिलावे...(८) (29) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग : तोरणथी वर पाछो) तुम दरिशन भले पायो, प्रथम जिन! तुम दरिशन भले पायो; नाभि नरेसर नंदन निरूपम, माता मरूदेवी जायो. प्र० १ आज अमिरस जलधर वुठो, मानुं गंगाजले नहायो; सुरतरु सुरमणि प्रमुख अनोपम, ते सवि आज में पायो. प्र० २ युगला धर्म निवारण तारण जग जस मंडप छायो; प्रभु तुज शासन वासन समकित, अंतर वैरी हरायो. प्र० ३ कुगुरु-कुदेव-- कुधर्मनी वासे, मिथ्यामतमे फसायो. मे प्रभु आजसे निश्चय किनो, सवि मिथ्यात्व गमायो, प्र० ४ बेर बेर कई विनंती इतनी, तुम सेवारस पायो; ज्ञानविमल प्रभु साहिब नजरे, समकित पूरण सवायो. प्रथम जिन! तुम दरिशन भले पायो. प्र० ५ (30) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग : आयो हो मेरी) हे आदिजिन स्वामी विनंती सुणो अमारी भवोभव ना रोग टाली, त्यागी बनावो मुजने...अनंत पिताना कुलमां, अवतरी चूक्यो छु, अनंत मातानी कुलमां, जन्मी चूक्यो छु, अनंत कुटुंबमां फरियो, हजु तेना पार पडीयो।।१॥ अग्नि रुपीजे क्रोध, अजगर रुपीजे मान, इन्द्रजाल रूपी माया, वली सर्परूपी लोभ, बंधनरूपी जे माया, ते मे कदी ना छोडी, ॥२॥ हुं
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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