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________________ 158 प्रमाणे रे हमणां पामीयो, नरभव भरत मोझार । ए० ३ महाविदेहे रे स्वामि तुम वसो, पांख नहि मुज पास, किण पेरे आवी पाप आलोईए, मनमां रहीयो विमास, ए० ४ मिलवा हैडु रे अरिहंत किम मिलुं, शत्रु घणा मुज लार, वहार करजो हो तुम केवल धणी, अवर नहि रे आधार, ए० ५ अंब विना जिम कोयल नवि रमे, मधुकर मालती सेव। रति नवि पामे हो तिम मन माहरूं, तुम दरिशण विण देव, ए० ६ स्वामि तुमारी हो करीशुं स्थापना, जाणे श्री जिनराय, गुण गावंता हो भावशुं भावना, निश्चलता मन लाय, ए ए अवधारो जिनवर विनती....७ (15) श्री सीमंधर जिन स्तवन पुख्खलवई विजये जयो रे, नयरी पुंडरिगिणीसार; श्री सीमंधर साहिबा रे, राय श्रेयांस कुमार जिणंदराय ! धरजो धर्मसनेह ॥१॥ म्होटा नाना अंतरो रे. गिरूआ नवि दाखंत; शशि-दरिशण सायर वधे रे, कैरव-वन विकसंत । जिणंद०।२।। ठाम कुठाम न लेखवे रे, जग वरसंत जलधार; कर दोय कुसुमे वासीये रे, छाया सवि आधार ।। जिणंद०॥३॥ रायने रंक सरीखा गणे रे, उद्योते शशी सूर; गंगा जल ते बिहुँ तणा रे, ताप करे सवि दूर । जिणंद०॥४॥ सरिखा सहुने तारवा रे, तिम तुमे छो महाराज!; मुजशुं अंतर किम करो रे, बाह्य ग्रह्यानी लाज।। जिणंद०॥५।। मुख देखी टीखें करे रे, ते नवि होय प्रमाण; मुजरो माने सवि तणो रे, साहिब तेह सुजाण जिणंद०।।६।। वृषभ लंछन माता सत्यकी रे, नंदन रूकमणीकंत; वाचक जश इम विनवे रे, भय-भंजन भगवंत ॥ जिणंद राय धरजो धर्म स्नेह....७ (16) श्री सीमंधर जिन स्तवन श्री सीमंधरु रेमारा प्राण तणा आधार, जिनवर जयकरूं रे, जेना झा झा छे उपकार, क्षण क्षण सांभरें रे, एक थास मांहे सो वार, किमहिन विसरे रे, जे वसिया छे हृदय मोझार,...॥१॥ हुं शी हियडले रे, जेम होय मुक्ता फळनो हार, ते तो जाणीये रे, ओ सवि बाहिरनो शणगार, प्रभु तो अभ्यंतरे रे, अलगान रहे लगार, अहनिश वंदना रे, करीये छीये ते अवधार श्री०॥२॥ नयन मेलावडे रे, नीरखि सेवकने संभार, तो हुँ लेखवू रे, म्हारो सफळ
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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