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________________ 159 सफळ अवतार, नहि कोई तेहवो रे, विद्या लब्धिनो उपाय, आवीने मर्छ रे, चरण ग्रहुं हुं वळी धाय, श्री०॥३॥ मळवू दोहीलुं रे, तेहशुं नेहतणो जे लाग, करतां सोहिलं रे, पण पछी विरहनो विभाग, चंद्रचकोरने रे, चकवा दिनकर ते होय जेम, दूरे रह्यां थकी रे, तो पण तस वधतो छ प्रेम श्री० ॥४।। पण तिहां एक छे रे, कारण नजरनो संबंध, विरहे ते नहि रे, ए मन मोटा छे रे धंध, पण एक आशरो रे, सुगुण सुं जे रे एकतान, तेहथी वाधशे रे, ज्ञान विमल गुणनो जशमान श्री सीमंधरू रे मारा प्राण तणां आधार श्री सीमंधरु रे मारा प्राण तणा आधार...।।५।। (17) श्री सीमंधर जिन स्तवन तमे महाविदेह जइने कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर तेडा मोकले, मारा भरतक्षेत्रनां दुःख कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर०॥१॥ अज्ञानता तो छवाइ रही छे, तत्त्वोनी वात बधी भूलाइ गइ छे, एवा आत्मानां दुःख मारा, कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर० ॥२॥ पुद्गलनां मोहमा फसाइ रह्यो छु, कर्मोनी जालमां जकडाइ रह्यो छु, एवा कर्मोनां दुःख मारा कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर० ॥३॥ मारु न हतु तेने मारुं करी जाण्युं, मारु हतुं तेने नवि पिछाण्युं, एवा मुर्खतानां दुःख मारा कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर० सीमंधर सीमंधर हृदयमां धरती, प्रत्यक्ष दर्शननी आशा हुं करती, एवा वियोगनां दुःख मारा कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर० ॥४॥ संसारनुं सुख मने कारमुं लागे, तारा विना वात कहुं कोनी आगे, एवा विरविजयनां दुःख कहेजो चांदलिया (२) सीमंधर तेडा मोकले ।।५।। (18) श्री सीमंधर जिन स्तवन (राग : उंची तलावडीनी कोर) ___ मनडु ते माहरु मोकले “मारा वालाजी," शशहर साथे संदेश जईने कहेजो अटलं "मारा वालाजी, भरतना भक्तोने तारवा एकवार आवोने आ देश, “मारा वालाजी" भरत० १ प्रभुजी वसोपुष्कलावती महा विदेह क्षेत्र मोझार पूरी राजे पुंडरिक गिणी, जिहां प्रभुनो अवतार (२) मा० वा० २ श्री सीमंधर साहिबा, पण विचरंता वित्तराग, पडीबोहे प्राणीने, तेहनो पामे कुण ताग (२) मा० वा० ३ मन जाणे उडी मर्छ, पण पोते नहि पांख
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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