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________________ 152 शीश. कागळ लर्खा कोडथी० ॥१॥ स्वामी जघन्य तीर्थंकर वीस छे, उत्कृष्टा ओकसो ने सित्तेर, तेमां नही फेर, कागळ लखुं कोडथी० ॥२॥ स्वामी बार गुणे करी युक्त छो, अंगे लक्षण अक हजार, उपर आठ सार.. कागळ० ॥३॥ स्वामी चोत्रीस अतिशये शोभतां, वाणी पांत्रीस वचन रसाळ, गुणो तणी माळ.. कागळ० ॥४।। स्वामी गंधहस्ति सम गाजता, त्रण लोकतणा प्रतिपाळ, छो दिनदयाळ.. कागळ० ॥५।। स्वामी काया सुकोमल शोभती, शोभे सुंदर सोवन वान, करुं हुं प्रणाम. कागळ० ॥६॥ स्वामी गुण अनंत छे आपना, ओक जीभे कहया केम जाय, लख्या न लखाय.. कागळ० ।।७।। भरतक्षेत्रथी लिखीतं ग जाणजो, आप दर्शन इच्छित दाश, राखुं तुम आश.. कागळ० ॥॥ में तो पूर्वे पाप किधा घणां, जेथी आप दर्शन रहयां दूर, न पहोंचुं हजूर. कागळ० ॥६॥ मारा मनना संदेह अति घणां, आप विना कहया केम जाय, अंतर अकलाय. कागळ० ॥१०॥ आडा पहाड पर्वतोने डुंगरा, जेथी नाखी द्रष्टि नव जाय, दर्शन केम थाय..कागळ० ॥११।। स्वामी कागळ पण पहोंचे नही, नहीं पहोंचे संदेशोके शाही, अमे रह्यां आही. कागळ० ।।१२।। देवे पांख आपी होत पीठमां, उडी आवू देशावर दूर, तो पहोंचुं हजूर. कागळ० ॥१३॥ स्वामी केवळज्ञाने करी देखजो, मारा आतमना छो, आधार, उतारो भवपार. कागळ० ॥१४॥ ओछु अधिकुंने विपरीत जे लख्युं. माफ करजो जरुर जिनराज, लागुं तुम पाय. कागळ० ॥१५॥ संवत अढारसो त्रेपन सालमां, हरखे हरख विजय गुण गाय, प्रेमे प्रणने पाय. कागळ० ॥१६।। (4) श्री सीमंधर स्वामी- स्तवन ___ श्री सीमंधर मुज मन स्वामी, तुमे साचा छो शीवपुर गामि के चंदा; तुमे जई कहेजो के, अकवार तुमे अहींया ज आवो, मिथ्यात्वीने घj समजावो के चंदा; तुमे जई कहेजो कहेजो. मारा वालाने कहेजो जिनराजने कहेजो; सीमंधर स्वामीने तुमे भरत क्षेत्रमा अहिंया, आवो के चंदा तुमे जइ कहेजो(१) मनडुं ते मारुं तुम पासे छे, चंदा चरणे चित्त चाहुं के चंदा० जिहां ते जिनजीना वृक्ष ज दिसे, तिहा जिनना गुण गावा दील हीसे के चंदा० (२)
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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