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________________ 153 भरत क्षेत्रना जे भवी प्राणी, जिनजी वाणी सुण्यानी घणी खाणी के चंदा, महाविदेह क्षेत्रना जे भवी पाणी, नित्य सुणे छे तुमचीवाणी के चंदा० (३) अनुभव अमृत अवगाही लेजो, चंदा रति ओक दर्शन देजो के चंदा० जो जिनवर वाणी क्षेत्र ज लहिये, तो चंदा अमे तमने शेना कहीये के चंदा० (४) तस पद पंकज जिनविजयना, चंदा नयणे जोवानी घणी होंश के चंदा० वाचक जस कीर्तिविजयना शिष्य, निमळ पहोंचे जगीश के चंदा० (५) (5) श्री सीमंधर स्वामीनुं स्तवन साहिबा श्री सीमंधर साहिबा सा० तुमे प्रभु देवाधिदेवा, सा० सा० सन्मुख जुओने म्हारा साहिबा; साहिबा मन शुद्धे करूं तुम सेवरे, सा० अंक वार मळोने महारा साहिबा १. सा० सुख दुःख वातो म्हारे अति घणी सा० कोण आगळ कहुं नाथ? रे सा० केवलज्ञानी प्रभु जो मळे, सा० तो थाउं हुँ रे सनाथरे सा० ओक० २. सा० भरत क्षेत्रमा हुँ अवतर्यो सा० ओछु अटलुं पुन्य; सा० ज्ञानी विरह पड्यो आकरो, सा० सा० ज्ञान रह्यं अति न्यून. ओक० ३. सा० दश द्रष्टांते दोहिलो, सा० उत्तम कुळ सौभाग्य सा० पाम्यो पण हारी गयो, जेम रत्ने उडाड्यो काग. रे सा० अक० ४ सा० षटरस भोजन बहु कर्या, सा० तृप्ति न पाम्यो लगार; सा० सा० हुं रे अनादिनी भूलमां, सा० रझव्यो घणो संसार. रे सा० अक० ४ सा० स्वजन कुटुंब मव्यां घणां, सा० तेहने दुःखे दुःखी थाय; सा० सा० जीव ओक ने कर्मजुजु आ, सा० तेहथी दुर्गति थाय. अक०६ सा० धन मेळववा हुं धसमस्यो, सा० तृष्णानो नाव्यो पार; रे, सा० सा० लोभे लटपट बह करी, सा० न जोयो पाप व्यापार रे, सा० अक० ७. सा० जेम शुद्धाशुद्ध वस्तुछे, सा० रवि करे तेह प्रकाश रे, सा० सा० तिमहीज ज्ञानी मल्ये थके, सा० तेतो आपे रे समकित वास रे, सा० अक० ८ सा० मेघ वरसे छे वाडमां, सा० वरसे गामो गाम रे, सा० सा० ठामकुठाम जुओ नही, सा० अहवा म्होटाना काम रे, सा० अक० ६ सा० हुं वस्यो भरतने छेडले, सा० तुमे वस्या महाविदेह मोझार रे, सा० सा० दूर रही करुं वंदना, सा० भव समुद्र उतारो पार रे, सा० ओक० १० सा० तुम पासे देव घणा वसे, सा० ओक मोकलजो महाराज रे, सा० मुखनो संदेशो सांभळो, सा० तो सहेजे सरे
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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