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________________ 151 स्तवन विभाग (1) श्री सीमंधर जिन स्तवन मलपति टोपी हिरले गुंथी, गुंथी मलपती टोपी रे, बाळकुंवरने माथे सोहिये, नानडीया ने माथे रे, देखत भविजन लोक रे श्री आणा सीमंधर स्वामी, आदिश्वर ने गाईये रे, ॥१॥ ओक ओढाडे रत्न पीछोडे, बीजी पहेरावे मोती रे, ओक अणीयाळी काजळ सोहिये, नजर करी निहाळी रे ॥२॥ -ओक तो फुलनी छाब भरावे, बीजी तो हार गुंथावे रे, ओक प्रभुने कंठे सोहावे, हरखे भावनां भावे रे, ॥३॥ मामा मामी लाड लडावे, बेनी मंगळ गावे रे, फई प्रभुनुं नाम धरावे, इन्द्राणी हुलरावे रे ॥४॥ सोना रुपाना पारणीये पोढाडूं, हीरनी दोरीये हिंचोळु रे. माता प्रभुनु हालरडुं गावे, इन्द्राणी हुलरावे रे ॥५॥ अम कहे सुण वत्स बालुडा, मुजने लागे प्यारो रे. आपण शुं छातीशुं भींडे, मुकिततणां सुख मांगु रे. ॥६॥ श्री विर विजय कहे सेवा तुमारी, होजो अमने घणी हेवा रे.-ज्यां समलं त्यां केवळ होजो, तुम चरणे मम सेवारे. ॥७॥ (2) श्री सीमंधर जिन स्तवन सुनो सुनो हां हां रे सुनो सुनो, हो हो रे सुनो सुनो, सीमंधर स्वामी शासन स्वामी रे, मने लगी मिलन की आश; अंतर जामी रे. ॥१॥ में भरत क्षेत्र में आय, लियो में वासो रे, तुम लगे न आयो जाय. पुंछु केम सासो रे. ॥२॥ मेरा वितराग विण नीर नयणें वर्षे रे; मेरु हैयुं न रहेवे हाथ, सदा जिन तलसेरे, में नथी उघाडी आंख निंदन आवे रे; भगवंत विना भव्य जीव बहु दुःख पावे रे, इम तलसे दिन ने रात, मनडु मेरुं रे; कब देखें जिन देदार दरिशन तेरु रे. ॥४॥ इम जिनगुण गावे जिन दास, मधुरी वाणी रे, चरणो री रज करी राख....अपनो जाणीरे. ॥५॥ (3) श्री सीमंधर जिन स्तवन स्वस्ति श्री महाविदेह क्षेत्रमां, जिहां राजे तीर्थंकर वीश, तेने नमुं
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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