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________________ 106 जाय, संकट टले तस जश बहु थाय, तस सुर नर गुण गाय; निराशंसपणे तप अह, शंका रहितपणे करो तेह, नवनिधि होय जेम गेह. ॥२॥ उपधान थानक जिन कल्याण, सिद्धचक्र शत्रुजय जाण, पंचमी तप मन आण, पडिमा तप रोहीणी सुखकार, कनकावली रत्नावली सार,-मुक्तावली मनोहार, आठम चौदशने वर्धमान, इत्यादिक तपमांहे प्रधान, रोहीणी तप बहमान, ओणीपरे भाखे जिनवर वाणी, देशना मीठी अमीय समाणी, सूत्रे तेह गुंथाणी. ॥३॥ चंडा जक्षी यक्षकुमार, वासुपूज्य शासन सुखकार, विघ्न मिटावण हार; रोहीणी तप करता जन जेह, इह भव परभव सुख लहे तेह, अनुक्रमे भवनो छेह, आचारी पंडित उपगारी, सत्य वचन भाखे सुखकारी, कपूर विजय व्रतधारी, खिमा विजय शिष्य जिन गुरूराय, तस शिष्य मुज गुरू उत्तम थाय, पद्मविजय गुणगाय. ॥४।। (96) श्री रोहीणीनी स्तुति जयकारी जिनवर, वासुपूज्य अरिहंत, रोहीणी तपनो फल, भाखे श्री भगवंत, नरनारी भावे, आराधे तप अह, सुख संपत्ति लीला, लक्ष्मी पामे तेह, ।।१।। ऋषभादिक जिनवर, रोहीणी तप सुविचार, निज मुखथी प्रकाशे, बेठी पर्षदा बार; रोहीणी दिन कीजे, उत्तम तप उपवास, मन वांछित लहीओ, थाय आत्म उल्लास, ॥२॥ आगममां अहना, भाख्या लाभ अनंत, विधिशुं परमारथ, साधे सुधो संत, दिन दिन वळी वाधे, अंग अधिको नूर, दुःख दोहग जाये, पामे सुख भरपूर, ॥३॥ महिमा जग मोटो, रोहीणी तपनो जाण, सौभाग्य सदाते, पामे चतुर सुजाण, नित नित घर ओच्छव, नित्य नवला शणगार, जिन शासन देवी, लब्धि विजय जयकार, ॥४॥ (97) श्री रोहीणीनी स्तुति शिव सुख दायक नायक अ जिन, सेवे चोसठ ईंदाजी; वासु पूज्य जिन ध्यान स्मरणथी, नित नित होय आणंदाजी, रोहीणी तप जगमां अति मोटो, खोटो नहीय लगार जी; अनुभव ज्ञान सहित आदरतां, लहिले भव भय पारजी. ॥१॥ सगवीसमे दिन आवे रोहिणी, तीण दिन करो उपवासजी; द्रव्य भाव जिन पूजो चोवीस, केसर कुसुम बरासजी, धूप अगर
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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