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________________ __ 105 (94) अकादशीनी स्तुति गौतम बोले ग्रंथ संभाली, वर्द्धमान आगल रढीयाली, वाणी अतीहि रसाली; मौन अग्यारस महिमा भाली, कोणे किधिने कोणे पाली, प्रश्न करे टंकशाली; कहोने स्वामी पर्व पंचाली, महिमा अधिक अधिक सुविशाली, कुणकहे कहो तुमे स्वामी; वीर कहे मागशर अजुआली, दोढसो कल्याणक निहाली, अग्यारस कृष्णे पाली. १ नेमिनाथ वारे जाणो, कान्हुडो त्रण खंडनो राणो, वासुदेवसुप्रमाणो; परिग्रहने आरंभे भराणो, ओक दिन आतम किधो शाणो, जिनवंदन उजाणो; नेमिनाथने कहे हेत आणो, वरसे वारु दिवस वखाणो, पाली थाउं शिव राणो; अतीत अनागत ने वर्तमान, नेवू जिनना हुवा कल्याण, अवर न अह समान. २ आगम आराधो भवि प्राणी, जेहमां तीर्थंकरनी वाणी, गणधर देव कमाणी; दोढसो कल्याणकनी खाणी, ओह अग्यारसने दिन जाणी, ओम कहे केवल नाणी; पुन्य पाप तणी जीहां कहाणी. सांभलता शुभ लेख लखाणी, तेहनी स्वर्ग निसाणी; विद्या पूरव ग्रंथे रचाणी, अंग उपांग सूत्रे गुंथाणी, सुणता दिओ शिव राणी. ३ जिन शासनमां जे अधिकारी, देव देवी होओ समकित धारी, सानिध्य करे संभारी; धरम करे तस उपर प्यारी, निश्चल धर्मकरे सुविचारी; जे छे पर उपकारी; वड मंडल महावीरजी तारी, पाप पखाली जिन जुहारी लालविजय हितकारी, मातंग जक्ष करे मनोहारी, ओलग सारे सुर अवतारी, श्री संघना विधन निवारी. ४ (95) श्री रोहीणीनी स्तुति नक्षत्र रोहीणी जे दिन आवे, अहोरत्त पौषध करी शुभ भावे, चउविहार मन लावे; वासु पुज्यनी भक्ति कीजे, गणणुं पण तस नाम जपीजे, वरस सत्तावीश लीजे, थोडी शकते वरस ते सात, जावज्जीव अथवा विख्यात, तप करी करो कर्म घात; निज शकते उजमणुं आवे, वासुपुज्यनुं बींब भरावे लाल मणीमय ठावे ॥१॥ अतीत अनागतने वर्तमान, वंदो विचरता जिन बहुमान, कीजे तस गुण गान, तप कारकनी भक्ति आदरीओ, साधर्मिक वली संघनी करीओ, धर्म करी भव तरीओ; रोग शोक रोहिणी तपे
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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