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________________ 107 गौ घृत दीप पूरी, वृक्ष अशोक रसाल जी; ते तले वासुपूज्य प्रतिमां थापी, पूजो भावे त्रीकालजी; ॥२॥ सात वरस सातमासे तपनो, मान कहे जिनरायजी, पडिक्कमणुं देव वंदन किरिया, निर्मल मन वच कायजी; भूमि शयन ब्रह्म व्रत तप पूरे, उजमणुं निज शक्तेजी, दर्शन-नाण चरण आराधो, साधो श्रुत निर्युक्तेजी, ॥३॥ रूमझुम करती संकट हरती, धारती समकित बालिजी, चंडाई देवी जिनपद सेवी, शासननी रखवालीजी, रोहीणी तप आराधे भवियां, भाव थकी मन साचेजी, ते लहे कांति अधिक जस जगमां, जो जिन भक्ते राचेजी. ॥४॥ (98) श्री रोहीणीनी स्तुति रोहिणी नक्षत्र जे दिन आवे, ते दिन उत्तम जाणोजी, चोविहार उपवास ने पौषध, अष्टपहोर मन आणोजी, वासुपूज्य जिनबिंब भरावी, गणणं तस नाम जपीजेजी, वरस सात सत्तावीश सीमा, जावज्जीव पण कीजेजी....१ अतीत अनागत वर्तमान जिन, वंदोधरी मन रंगेजी स्वामी वत्सल भक्ति प्रभावना, कीजेअति उछरंगेजी, रोहिणी तप करतां अघनाशे, रोग शोकजाय दुरेजी, अष्ट महासिद्धि नवनिधि प्रगटे, पामे आनंद पूरेजी....२ विगते जिनवर आगम भाख्यां, तपना अनेक प्रकारजी चउगतिचूरण आशा पूरण, रोहिणी तप जग सारजी, अनुभव जोगी निज गुण भोगी, ए तप जे आराधेजी, ज्ञान दर्शन चरण फरसी विलसे, जेह सुख उच्छांहेजी....३ चंडायक्षिणी शासन सूरी, द्वादशमां जिन केरीजी, कामित दाता जग विख्याता, आपे ऋद्धि भलेरीजी, ज्ञान दिवाकर जग परमेश्वर, ध्यान जीवनमा ध्यावेजी, उत्तमविजय विबुध पय सेवक, रत्नविजय गुण गावेजी....४ (99) अतिशयनी स्तुति पहेलो अपाया पगमातिशय, जिन विचरे त्यां होवेजी, रोग शोकने इति उपद्रव, पाप पराभव खोवेजी, कंटक अवला कुसुम सवला, जानु लगे वरसावेजी, सुभिक्ष सदाकर अतिशय एहवा, नमता शिवसुख आवेजी, १ बीजो ज्ञान महावड अतिशय, केवल कमला दाखेजी, चौदस राजमां जीव
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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