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________________ 104 (92) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति अमर किन्नर ज्योतिषधर नर, अभिवंदित पायाजी, समुद्रविजय कुल कानन जलधर, श्यामल वर्णजस कायाजी, जय यदुनंदन मदन विगंजन, चंदन वचन सुहायजी, नेम निरंजन नयन नलीनदल, पावन शिव सुख दायाजी, १. जय राजुलवर करुणासागर, पुन्यपवित्र तुज कायजी, राजुल रढीयाली लटकाळी, छोडी चाल्यो तजी मायाजी, सत्यभामा वर लई हलधर, तोरण किणही पठायाजी, ऋषभादिक जिनथी तुं अधिको, कहत शिवा सुण जायाजी, २. चारित्र लेई चोपनमें दिन, केवलज्ञान उपायजी, चउविह देवमली मन रंगे, समवसरण विरचायजी, बारह पर्षदामांही बेसी, बहुजन धर्म बतायाजी, शासन पामी त्रिभुवन स्वामी, आपे मुगते सधायाजी, ३. यदुनायक श्री नेमि जिनेश्वर, यादववंश दिपायाजी, राजुलनारी पियुने प्यारी, लेई मुगति राखी मायाजी, जगदंबा अंबा रखवाली, शासन देवी ठायाजी, माय मया करी संघ विघनहर, भाणविजय गुणगायजी, (93) अकादशीनी स्तुतिः निरुपम नेमि जिनेश्वर भाखे, अकादशी अभिरामजी; अकमने जेह आराधे, ते पामे शिव ठामजी, तेह निसुणी माधव पूछे, मन धरी अति आनंदोजी, अकादशीनो अहवो महिमा, सांभळी कहे जिणंदोजी, १ अकशत अधिक पचास प्रमाण, कल्याणक सवि जिननाजी, तेह भणी ते दिन आराधो, छंडी पाप सवि मननाजी; पोसह करीओ मौन आदरीओ, परिहरिओ अभिमानजी, ते दिन माया ममता तजीओ, भजीओ श्री भगवानजी. २ प्रभाते पडिक्कमणुं करीने, पोसह पण तिहां पारीजी, देव जुहारी गुरुने वांदी, देशनानी सुणो वाणीजी; साहमी जमाडी कर्म खपावी, उजमणुं घर मांडुजी, अशनादिक गुरुनेवहोरावी, पारj करो पछी वारुजी. ३ बावीसमा जिन अणी परे बोले, सुण तुं कृष्ण नरिंदाजी, अम अकादशी जेह आराधे, ते पामे सुख वृंदाजी; देवी अंबाई पुण्य पसाये, नेमिश्वर हितकारीजी, पंडीत हरख विजय तस शिष्य, मान विजय जयकारीजी. ४
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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