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________________ 82 ( 42 ) अजितनाथ जिनेन्द्र स्तुतिः तमजितमभिनौमि, यो विराजद्, चनघनमेरुपरागमस्तकान्तम्; निजजननमहोत्सव, धितष्टा- चनघनमेरुपरागमस्तकान्तम, १ स्तुत जिननिवहं तमर्तितप्ता,डध्वनसुरामरवेण वस्तु वन्ति यममरपतयः प्रयाग पार्श्वद्ध्वनसुरामरवेणव स्तुवन्ति २ प्रवितर वसतिं त्रिलोकबन्धे, ! गमनययोगतताङन्तिमे पदे है; जिनमत विततापवर्गविथी, गमनययों ! गततान्ति मेडपदेहे . ३ सितशकुनिगतांशुमान -सीद्धा, त्तततिमिरंमदभासुरांज्तिाडशम् वितरतु दधती पर्विक्षतोद्यत्तततिमिरं मदभासुरांडजिता शम्, ४ ( 43 ) अजितनाथ जिनेन्द्र स्तुति अजित जिनेश्वर सेवये, जेनी विजयामात, नगरी अयोध्यानो राजीयो, लंछन नाग विख्यात, साडी चारसो धनु देहडी, सोहे सोवन वान, बिहुतेर लाख पूरवतणुं, आयु जास प्रधान, तारंगे तारक जयो, प्रभु अजित जिणंद, विमलगिरि आदिश्वरुं, उज्जित नेमि जिणंद, सांचोरे श्री वीरजी, थल ठाकोर गोडी, तिरथ तिहुं लोकमां, प्रणमुं करजोडी, अजित जिनेश्वर उपदिशे, मधुरी मुख वाणी, सांभळतां सुख उपजे, जुओ हियडे आणी, दुर्गतिनां दुःख मेटीये, होवे निर्मल काया, हेलाए शिवपद पामीये, जपतां जिनराया, शासननी रखवालिका | अजिता सूरराणी, सार करे श्री संघने, योग माया ब्रह्माणी, पंडित तिलक विजय गुरू, सेवता भविप्राणी, नेमि विजय सुख संपदा, लहीये गुणखाणी, ( 44 ) श्री संभवनाथ जिनेन्द्र स्तुति निर्भिन्नशत्रुभवभय, ! सं भवकान्तारतार तार ! ममाडरम्, वितरतु त्रातजगत्त्रय, ! संभव ! कान्तारतारतारममारम्, १ आश्रयतु तव प्रणतं, विभया पमारमारमानमदमरैः स्तुत लहित जिन कदम्बक १ विभयाडपरमार मार मानमदमरैः; जिनराज्या रचितं स्ता- दसमाननयानया नयामृयतमानम्; शिवशर्मणे मतं दध, दसमाननयानयानया मृयतमानम्. ३ शृंखलनयात्कनकनिभा, या ताम-समानमानमानमानवमहिताम्; श्रीवज्रशृखलां कजनयनया, तामसमान मान मानव- महिताम्. ४.
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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