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________________ 81 विपीन कुठारा, पूजीए प्रेम धारा । २ । प्रबल नयण प्रकाशा, निक्षेप शुद्ध वासा, विविध नय विलासा, पूर्णनाणाव भासा, परिहरित कदाशा, दंत दुर्वादि वासा, भविजन सुणी खासा, जैन वाणी जयासा । ३ । सकल सुर विशिष्टा, पालिता नेक शिष्टा, गरिमगुण गरिष्ठा, नासिता शेष रिष्टा, मरण निष्ठा, दानलीला पटिस्था, हरत सकल दुष्टा, देवी चक्रा वरिष्ठा । ४ । (40) श्री ऋषभदेवनी स्तुति जन्म " भव्याम्भोजविबोधनैकतरणे, विस्तारिकर्मावली, रम्मासामजनाभिनन्दन ! महा,नष्टा-पदाभासुरै; भक्त्या वन्दितपादपद्म विदुषां संपादय प्रोज्झिता,रम्भाङसामजनाभिनन्दन महा, नष्टापदाभासुरैः, १ तेवः पान्तु जिनोत्तमाः क्षतरुजो, नाचिक्षिपुर्यन्मनो, दारा विभ्रमरोचिताः सुमनसो, मन्दारवा राजिताः, यत्पादौ च सुरोज्झिताः सुरभयां, चक्रुः पतन्त्योङम्बरा, दाराविभ्रमरोचिताः सुमनसो, मन्दारवाराजिताः, २. शान्ति वस्तुनुतान्मिथोडनुगमना, द्यन्नैगमाद्यैर्नयै,- रक्षोभंजन हेडतुलांछितमदौ, दीर्णांगजालंकृतम्, तत् पूज्यैजगतांजिनैः प्रवचन दृष्यत्कुवाद्यावली, रक्षोभंजन हेतुलांछितमदौ, दीर्णाङगजाङलंकृतम्, ३ शीतांशुत्विषि यत्र नित्य मदधद्, गन्धाढयधूलीकणा, नाली केसरलालसा समुदिता, डडशु भ्रामरी - भासिता; पायावः श्रुतदेवता निदधतो, तत्राब्जकान्तीक्रमौ, नाली केसरलालसा समुदिता, शुभ्रामरीभासिता, ४ ( 41 ) चैत्री पूनम जिन स्तुति चैत्र पूनम दिन, शत्रुंजय अहि ठाण, पुंडरिक वर गणधर, तिहां पाम्यां निर्वाण, आदिश्वर केरा, शिष्य प्रथम जयकार, केवल कमलावर, नाभि नरिंद मल्हार, ॥१॥ चार जंबूद्विपे, विचरंता जिनदेव, अड धातकि खंडे, सुरनर सारे सेव; अड पुष्कर अर्धे, अणीपरे वीश जिनेश, संप्रतिओ सोहे, पंच विदेह निवेश ॥२॥ प्रवचन प्रवहण सम, भवजल निधि तारे; कोहादिक महोटा, मत्स्यतणा भय वारे, जिहां जीवदया रस, सरस सुधारस दाख्यो, भवि भाव धरीने, चित्त करीने चाख्यो, ||३|| जिन शासन सानिध, कारी विघन विदारे, समकित दृष्टि सुर, महिमां जास वधारे, शत्रुंजय गिरि सेवो, जेम पामो भवपार, कवि धिर विमलनो, शिष्य कहे सुखकार ||४||
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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