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________________ 83 (45) त्रीजनी स्तुति निसीहि त्रण प्रदक्षिणा त्रण, प्रणाम त्रण करीजेजी, त्रण दिशी वर्जी जिन जुओ, भूमि त्रण पूजीजेजी; त्रण प्रकारी पूजा करीने, अवस्था त्रण भावीजेजी, आलंबन त्रण मुद्रा प्रणिधान, चैत्यवंदन त्रण कीजेजी. १ पहेले भावजिन द्रव्यजिन बीजे, त्रीजे अक चैत्य धारोजी, चोथे नामजिन पांचमे सर्वे, लोक चैत्य जुहारोजी; वीहरमान छठे जिन वंदो, सातमे नाण निहाळोजी, सिद्ध वीर उजिंत अष्टापद, शासन सूर संभारोजी. २ शक्रस्तवमां दोय अधिकार, अरिहंत चेइआणं त्रीजेजी, नाम स्तवमां दोय प्रकार, श्रुतस्तव दोय लीजेजी; सिद्धस्तवमां पांच प्रकार, ओ बारे अधिकारजी, जीतनियुकितमाहे भांख्या, तेह तणो विस्तारजी. ३ भोजण पाण तंबोल वाहन, मेहुण ओक चित्त धारोजी, थुक सळेखम वडी नीति लधु नीति, जुगटे रमवू वारोजी; ओ दशे आशातना मोटी, वरजो जिनवर द्वारेजी, क्षमाविजय जिन अणीपरे जंपे, शासन सूर संभारोजी. ४ (46) अखात्रीजनी स्तुति सरस्वती स्वामीने पाय नमीने, गास्युं अमृत वाणीजी, आदि जिनेश्वर सवि दुःख भंजन, केवलज्ञान दिणंदाजी, अजर अरूपी असंग अभेदी, अक्रोधि प्रभु सोहेजी. श्री विजय देवेन्द्र सूरीश्वर वंदे, नित ऊठी प्रभातेजी. ॥१॥ विनिता नगरी तणो ते राजीयो, मुख सौहे पूनम चंदाजी श्री नाभिराया कुल दिपक, मरूदेवी माता मल्हारजी. राणी सुनंदा तणो जे वल्लहो, त्रण जग जन आधारजी, श्री विजय जिनेन्द्र सूरीधर जंपे, नित नित प्रथम जिणंदाजी, ॥२॥ संवत्सरी प्रभु दान देईने, दीक्षा लीधी सारजी, वरस दिवस लगे प्रभु तपतपीया, धन धन प्रथम जिणंदाजी, केवलज्ञान लही प्रभु पहोता, मुक्ति पुरी सुखदायजी, श्री विजय जिनेन्द्र सूरीधर ध्याने, हैयडे हर्ष बहु आणीजी, ॥३॥ शासन देवीश्री रखवाली, श्री चक्केसरी मायजी, अहनिश संघना कारज सारे, विघन निवारे क्रुरजी, तपगच्छ श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वर, शोधक इम जंपेजी, श्री धन कहे इम मुजने होजो, शिवसुख संपत दायजी,
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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