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________________ ७०] मृत्यु और परलोक यात्रा करती है । इसलिए प्रत्येक शरीर का छूटना उसकी प्रगति का सूचक है। ___ कुछ व्यक्ति इसी जन्म में साधना द्वारा सातों शरीरों को नष्ट कर देते हैं जिससे वे मृत्यु के बाद सीधे ही मुक्ति को प्राप्त हो जाते हैं। उनका अन्य किसी लोक में गमन नहीं होता ऐसे व्यक्ति "जीवन्मुक्त" कहलाते हैं। जीवात्मा का यह सूक्ष्म शरीर मुक्ति पर्यन्त बना रहता है तथा इसी के द्वारा वह विभिन्न लोकों में गमन करता है। सूक्ष्म शरीर के छूट जाने पर नया शरीर ग्रहण नहीं हो सकता। यह सूक्ष्म शरीर ही पुनर्जन्म ग्रहण करता है। मृत्यु के बाद जीवात्मा स्थूल शरीर को त्याग कर सर्वप्रथम जिस सूक्ष्म लोक में प्रवेश करती है उसे "कामलोक" या "प्रेत-लोक" कहते हैं । यह स्थूल लोक से कम घना किन्तु अन्य लोकों से अधिक घना होता है । जिन जीवात्माओं पर अशुभ कर्म संस्कारों का भार अधिक होता है उनका घनत्व अधिक होने से ये इसी लोक में रुक जाती है। उत्तम जीवात्माएँ हल्की • होने से वे शीघ्र ही इसे छोड़कर आगे के इससे भी सूक्ष्म लोकों में चली जाती है। ___ जीवात्मा के सात शरीरों की गति उन्हीं के अनुकूल लोक में होती है । इस प्रेत लोक में जीवात्मा को अपने कर्मों एवं वासना के अनुसार सुख दुःखों की अनुभूति होती है । इस लोक में कष्ट झेलकर जीवात्मा शुद्ध होती है तथा शुद्ध होकर वह इससे मुक्त होकर आगे के लोक में प्रवेश करती है जो इससे अधिक सूक्ष्म है। प्रेतात्मा का लिंग शरीर भी सात परतों
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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