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________________ मृत्यु के बाद का जीवन [७१ वाला होता है जिसमें यह प्रेत बन्द रहता है। उनके नष्ट हुए बिना उसकी इस लोक से मुक्ति नहीं हो सकती। प्रत्येक परत में वह थोड़े समय रहता है फिर वह उसे छोड़ कर मुक्ति की ओर बढ़ता है । साधारण जीव अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार पाँच से पचास वर्ष तक रहता है। जिनकी आत्मोन्नति अधिक हो गई है उनकी ये परतें शीघ्र ही नष्ट हो जाती हैं जिससे वह अगले लोक में शीघ्र ही चला जाता है। जो उपयुक्त आहार-विहार से अपना जीवन शुद्ध रखता है तथा जिसकी वासना मंद रहती है वह शीघ्र ही स्वर्ग लोक पहुंच जाता है । बीच के लोकों का उसे ज्ञान भी नहीं रहता । जिसकी पाशविक वृत्तियाँ रही हैं वे इस प्रेत लोक के अनुकूल खण्ड में ही जाएंगे। अकाल मृत्यु, कत्ल, आत्महत्या, दुर्घटना, युद्ध में मरने वालों के लिए अलग नियम हैं। यदि वे जीव शुद्ध हैं, यदि लोकहित में अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है तो उनकी विशेष रक्षा होती है। उनकी जितनी उम्र बाकी रह गई है उतने समय वे आनन्ददायक निद्रा में रहते हैं किन्तु अन्य लोगों को होश बना रहता है । बहुतों को मरते समय की बातों का विस्मरण नहीं होता। वे कामलोक की गहरी परत में ही रहते हैं। ___ आयु समाप्त होने पर वे कामलोक में जाते हैं। वे उस मृत्यु की पीड़ा का बार-बार अनुभव करते हैं। ऐसी मृत्यु किसी बुरे प्रारब्धवश ही होती है । जीव की सभी आशा, . तृष्णा, राग, द्वेष उसमें रहते हैं इसी से वह दूसरों को देखता भी है तथा उनके कार्यों में हस्तक्षेप करता है ।
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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