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________________ मत्यु के बाद का जीवन [६६ प्रवेश के बाद वह इस संसार की सभी सुखद एवं दुःखद अनुभूतियों से मुक्त हो जाता है। ___ जिस प्रकार घर छाड़कर विदेश जाने वाले को घर की याद सताती रहती है तथा नये वातावरण में जमने में उसे थोड़ा समय लगता है उसी प्रकार मृत्यु के बाद नये वातावरण में जमने में उसे थोडी कठिनाई होती है। यदि पीछे घर का मोह उसे छुड़ा दिया जाए तो वह अपने नये स्थान पर शीघ्र ही सामंजस्य बिठा लेता है। इस पुराने घर से मोह छुड़ाने के लिए भारत ने कई प्रयोग किए हैं तथा पूरा का पूरा मृत्यु शास्त्र विकसित किया। तिब्बत में भी इसके कई प्रयोग हुए मृत्यु के समय यह जीवात्मा स्थूल शरीर सहित समस्त स्थूल लोक एवं स्थूल पदार्थों का त्याग कर देता है। केवल इस जन्म में किए गए सभी शुभाशुभ कर्मों के संस्कार स्मृतियाँ, अनुभव, कर्म आदि की गठरी बाँध कर अपने साथ ले जाता है। इन्हीं से जीवात्मा का सूक्ष्म शरीर बनता है जो उसका स्वशरीर है। इस जीवात्मा के एक नहीं बल्कि सात शरीर हैं जिसका निर्माण उसकी घनता के आधार पर हुआ है। सबसे स्थूल यह स्थूल शरीर था जो छूटा है। अन्य छ: शरीर अभी विद्यमान हैं। जीवात्मा द्वारा की गई प्रगति के अनुसार ये छ: शरीर भी क्रम से छूटते जाते हैं तथा ज्यों-ज्यों अधिक घनत्व वाले शरीर छूटते जाते हैं त्यों-त्यों जीवात्मा हल्की होकर आगे के लोकों में गमन करती जाती है। सातों शरीर नष्ट होने पर ही वह मुक्त होकर परमात्मा में लय होने का अनुभव
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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