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________________ [ १७ सृष्टि रचना है । इसी घनता के आधार पर मनुष्य के शरीर के भी सात आवरण हैं जिनमें सबसे अधिक घनत्व वाला मनुष्य 'स्थूल शरीर' है । इसके भीतर अन्य सूक्ष्म शरीर है तथा अन्त में आत्मा का स्थान है जो सबसे सूक्ष्म है । यही आत्मा ईश्वर का अंश है । (य) सृष्टि की व्यवस्था इस सम्पूर्ण सृष्टि की व्यवस्था ईश्वर की इच्छानुसार देवगण करते हैं जो उस परब्रह्म का ही व्यक्त स्वरूप है । प्रत्येक विभाग के देवगणों से ऊपर उनका अधिपति देवता रहता है जैसे आकाश (ईथर) तत्त्व के देवगणों का अधिपति 'इन्द्र' है, अग्नि तत्त्वों का देवता 'अग्नि' है, वायु तत्त्व वालां का देवता 'वायु' है, जल तत्त्व का 'वरुण' है तथा पृथ्वी का 'कुबेर' है । ये देवता अपने-अपने तत्त्व के देवगणों के काम की निगरानी रखते हैं तथा ईश्वरेच्छानुसार उनसे कार्य करवाते हैं । इनकी प्रकृति व नियमों को समझ कर ही विज्ञान का विकास किया जा सकता है । इन्हीं को जानकर योगी कई प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त कर लेते हैं । ईश्वर की परा शक्ति के कई सचेतक घटक हैं जिनमें सर्वोच्च स्तर के देवगण हैं । सृष्टि संचालन में इन्हीं का हाथ है जो उस ब्रह्म चेतना के अतीव निकट माने जाते हैं एवं उसी के साथ संयुक्त हैं । इनका प्रधान कार्य सृष्टि में संतुलन बनाए रखना है । ये देव ही अवतारों के रूप में ईश्वर की इच्छा से प्रकट होते हैं । 1
SR No.032177
Book TitleMrutyu Aur Parlok Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Dashora
PublisherRandhir Book Sales
Publication Year1992
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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