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________________ . अर्थ-इसप्रकार जो भय रहित होय, समाधिमरणमें उत्साह सहित चार पारावनाको प्राराधि मरण करे है, उसकी स्वर्गलोक बिना अन्यगति नहीं होय है। स्वर्गमें भी महद्धिक देवही होय है। ऐसा निश्चय है। बहुरि स्वर्ग में आयुका अंतपर्यंत महासुख भोग करके इस मध्यलोकविषे पुण्यरूप निर्मल कुल में अनेक लोकद्वारा चितवन करते करते जन्म लेय अपने सेवकजन, तथा कुटुम्ब परिवार मित्रादिक.को नाना प्रकारके वांछित। धन, भोगादिरूप फल देय, अपने पुण्यकरि उपजे भोगोंको निरंतर भोग, आय प्रमाण थोड़े काल पृथ्वीमंडलमें संयमादि सहित, वीतराग रूप भए, जिसप्रकार नृत्यके अखाड़े में नृत्य करने वाला पुरुष लोकोंको आनन्द उपजाय जाय है तैसे, स्वयमेव देहत्याग निर्वाणको प्राप्त होय है ॥ दोहाः-मृत्यु महोत्सव वचनिका, लिखी सदासुखकाम । शुभअाराधन मरण करि, पाऊं निजसुखधाम ॥१॥ उगणीसे ठारा शकल, पंचमि मास अषाढ़। पूरण लखि बांचो सदा, मनधरि सम्यक गाढ़ ॥२॥ समाधिमरण लघु भाषा । गौतम स्वामी बन्दौनामी मरण समाधि भेला है। 'मैं कब पाऊँ निशदिन ध्याउं गाउं वचन कला है। .. देव धर्म गुरुप्रीति महा दृढ़ सप्त व्यसन नहीं जाने । त्यागि बाईस अभक्ष संयमी बारह व्रत नित ठाने ॥१॥ चक्की उखरी चूलि बुहारी पानी त्रस न विराधे।। बनिज करै परद्रव्य हरे नहीं छहों करम इमि साधे ॥ पूजा शास्त्र गुरुनकी सेवा संयम तप चहुँ दानी । ___ पर उपकारी अल्प अहारी सामायिक बिधि ज्ञानी ॥२॥ जाप जपै तिहुं योग धरै दृढ़ तनुकी ममता टारै। अन्त समय वैराग्य समारै ध्यान समाधि विचारै ॥ आग लगै अरु नाव डुवै जल धर्म विधन जब आवै । चार प्रकार अहार त्यागिके मंत्र सु मनमें . ध्यावै ॥३॥ - पूजा २
SR No.032175
Book TitleMrutyu Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadasukh Das, Virendra Prasad Jain
PublisherAkhil Vishva Jain Mission
Publication Year1958
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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