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________________ मरण की तैयारी :: ६३ ऐसी जीवन-साधना में अगर हम केवल जीवन-विस्तार का ही ध्यान करें और जीवन समेटने की कुछ भी तैयारी न करें तो वह अशिक्षित जीवन होगा, अधूरी साधना होगी और उसमें से ऐसे क्लेश पैदा होंगे, जिन्हें हम आसानी से टाल नहीं सकते। ___ सुबह उठते हम खाने की तैयारी करते हैं। दिनभर की प्रवृत्तियां चलाते हैं। लेकिन जब दिन का प्रकाश कम होता है, रात नजदीक आती है, थकान बढ़ती है, तब हम बड़ी ही उत्कण्ठा से रात के विश्राम और नींद की तैयारी करने लगते हैं । छोटे बच्चों को जब नींद आती है, तब जहां हैं, वहीं पर गिर जाते हैं और नींद में डूब जाते हैं। अपने खिलौने दूसरे दिन के लिए व्यवस्थित रखना, दिन के कपड़े बदलना, बिस्तरा तैयार करना और भगवान का नाम लेकर रजाई के नीचे सो जाना आदि तैयारी उनके ध्यान में नहीं आती। बच्चे जो ठहरे | किसी भी चीज़ की तैयारी उनके विचार में नहीं होती। ____यही हालत है हमारी मृत्यु के बारे में। मनुष्य ने सोचसोचकर एक ही बात सीख ली है कि अपनी मृत्यु के पश्चात अपनी जायदाद की अव्यवस्था न हो, इसलिए मृत्युपत्र यानी वसीयतनामा लिखकर रखना । इस बारे में भी हमारे लोगों में वसीयतनामा बनाने का आलस्य ही पाया जाता है । अरुचि भी दीख पड़ती है। उधर प्राचीन रोमन-समाज का ख्याल था कि वसीयतनामा नहीं करना और ऐसे ही मर जाना प्रसंस्कारिता का लक्षण है। ऐसे आदमी की समाज में निन्दा होती थी। कई लोग हर साल नया अद्यतन वसीयतनामा बनाकर पुराना रद्द करते थे। अगर निजी जायदाद रखनी है तो वसीयतनामा बनाना
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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