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________________ ६४ :: परमसखा मृत्यु आवश्यक चीज़ है । लेकिन मरण की जिस तैयारी की हम बात करते हैं, उसमें इस चीज का महत्व बहुत कम है । वसीयतनामा बनाने से पीछे रहनेवाले लोगों को आसानी होती है। अपने को तो मनमानी व्यवस्था करने का सन्तोष ही मिलता ____ जिस उत्साह से और दीर्घदृष्टि से योजनापूर्वक हम जीवनप्रवृत्ति का विकास करते हैं, उतनी ही पारमार्थिक दृष्टि से हमें मरण की तैयारी करनी चाहिए। ऐसी तैयारी के चन्द मुद्दों का हम विचार करें। सबसे पहले हमारी जीवन-संगिनी काया का ही विचार कर। ___जीवन के पुरुषार्थ और पराक्रम के लिए हम शरीर-शक्ति को बढ़ाते हैं। हमारा आहार धीमे-धीमे बढ़ता है । इन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है। उसके साथ महत्वाकांक्षा बढ़ती है, सहयोग शक्ति भी बढ़ती है। जब जीवन की उत्तरावस्था शुरू होती है, चढ़ती कमान उतरने लगती है, जीवनसंध्या का प्रारम्भ होने लगता है, तब धीरे-धीरे आहार कम करना चाहिए। हजम होने में कठिन ऐसे दुर्जर पदार्थों का खाना छोड़ देना चाहिए। सोने के पहले शाम का खाना हजम हो जाय, इसका भी ध्यान रखना चाहिए। रात को देरी से खाने से नींद भारी हो जाती है। ___ शरीर का वजन कुछ हल्का होना चाहिए । मनुष्य को सोचना चाहिए कि खाने के दिन थे, तब बहुत खाया, अब तो जिह्वालोल्य कम करना चाहिए। शरीर के लिए जितना जरूरी है, उतना ही खाना अच्छा। जिन चीजों को बनाने में काफ़ी तकलीफ उठानी पड़ती है, ऐसी चीजों का खाना भी छोड़ देना चाहिए।
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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