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________________ वसीयतनामा :: १४५ पुरुषार्थ और उसको सुरक्षा सारे समाज पर निर्भर है । हम सिर्फ अपने कुटुम्ब के लिए या जाति के लिए नहीं, बल्कि सारे समाज लिए हैं। समाज के हम घटक हैं । समस्त समाज के सहकार से ही हमारा आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पनप सका है । इसलिए हमारे जीवन का और कमाई का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा उस विशाल समाज को ही पहुंचना चाहिए। उसमें भी उस समाज के जिस हिस्से की या वर्ग की की और समाज की उपेक्षा हो रही है, उसी को हमारी अधिकसे-अधिक मदद पहुंचनी चाहिए । इच्छा-पत्र बनाते इस दृष्टि को प्रधानता मिलती चाहिए । इस युगधर्म की सोचते समय अपनी जाति, अपना वर्ग या अपने धर्म की मर्यादा या संकुचितता नहीं रखनी चाहिए । सरकार या राज्य-संस्था सारे समाज का प्रतिनिधि होते का दावा करती है । लेकिन राज्य संस्था अभी तक इतनी विकसित नहीं हुई कि नैतिक या आध्यात्मिक श्रादर्शों को समझ सके या न्याय या कुशलतापूर्वक उसका पालन कर सके । हमारे देश के मध्यकालीन राजा लोग और राज घराने के इतर स्त्रीपुरुष भी अपने दान-धर्म की व्यवस्था अपने राजतन्त्र के हाथ में न सौंपकर कोई अलग व्यवस्था करते थे । आजकल का जमाना सरकारी तन्त्र के प्रति असंतोष धारण करते हुए भी अपने सब काम उसी के जरिये करवाना चाहता है । बेहतर तो यह होगा कि जिस तरह साम्प्रदायिक तंगदिली से ऊबकर लोगों ने धर्मसंस्था ही अप्रतिष्ठित की, उसी तरह राजसंस्था की प्रतिष्ठा भी अब कम करके राजसत्ता से भिन्न ऐसा कोई नैतिक तंत्र हम खड़ा करें और उससे अपनी स्थायी काम करवायें । मृत्यु के बाद जिस चीज की कुछ-न-कुछ व्यवस्था तुरंत
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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