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________________ १४६ :: परमसखा मृत्यु करनो ही पड़ती है, वह है मरने वाले का शरीर। दुनिया के सब देशों में सबकी व्यवस्था धार्मिक रूढ़ि के अनुसार की जाती है। शरीर को जमीन में गाढ़ना, समुद्र आदि जलाशय में फेंक देना, खाने के लिए पक्षी आदि प्राणियों के सुपुर्द करना या अग्नि-संस्कार द्वारा फूंक देना-ये हैं सामान्य रूढ़ प्रकार । आजकल कोयले या बिजली के जरिये मुर्दे जलाने की भट्टियां भी बनाई जाती हैं। _ मैं मानता हूं कि शरीर को फूंक देने का रिवाज सबसे अच्छा है। मरने के बाद प्रेत की व्यवस्था कैसे की जाय, यह सवाल मरने वाले का इतना नहीं, जितना पीछे रहने वाले जिन्दा लोगों का है और वह भी प्रधानतया सामाजिक स्वास्थ्य और आरोग्य का है। मेरे खयाल से शव के अंतिम संस्कार के साथ धार्मिक विधि को जोड़ देना आवश्यक नहीं होना चाहिए। प्रेतात्मा कब्र के नीचे सोती है और कयामत के दिन ऐसे सब जीव अपना-अपना शरीर फिर से अोढ़कर आते हैं, ऐसी कुछ मान्यता के कारण कई धर्म-सम्प्रदायों के लोग शव को फूंक देना पसन्द नहीं करते। कब्रिस्तान में मुर्दे सड़ जाते हैं और उनकी मिट्टी हो जाती है, इसकी ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। मैं मानता हूं कि सेवाधर्मी व्यक्ति को चाहिए कि मृत्यु के बाद वह अपना शरीर, वैद्य, डाक्टर आदि लोगों को प्रयोग के लिए दे दे। मस्तिष्क, हृदय, कलेजा, फेफड़े आदि सब अवयवों को प्रयोग के लिए दे देना, यह शरीर का सबसे अच्छा उपयोग है। ऐसा उपयोग पूरा होने के बाद अग्नि-संस्कार कर दिया जाय। शव को चार आदमी उठाकर ले जायं या खास गाड़ी में डालकर ले जायं, यह सवाल महत्व का नहीं है। गाड़ी में डाल कर ले जाना अच्छा है-देखने के लिए भी और सहलियत की
SR No.032167
Book TitleParam Sakha Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaka Kalelkar
PublisherSasta Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year1979
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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