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________________ १८ [ तेरहवां प्रकरण स्त्री-धन दुर्भिक्षे धर्म कार्ये च व्याधौ संप्रतिरोधके गृहीत स्त्रीधनं भर्ता न स्त्रियै दातुमर्हति । निताक्षरा २-१४७ दुर्भिक्षमें कुटुम्बके भरणपोषण के लिये, अत्यावश्यक धर्म कार्य के लिये, बीमारीके ख्रर्चके लिये और किसी ऐसे मुक़द्दमें के खर्च के लिये जिसमें क़ैद में जानेका भय हो पति बिना मरज़ी स्त्रीके, धन लेसकता है और फिर उसके लोटाने की ज़रूरत नहीं है । कात्यायन के कहने का मतलब यह है कि जब पति की दशा सुधर जावे तो वह ऐसे धनको स्त्रीको लौटा, बल्कि ब्याज सहित लौटा देना चाहिये । और देखो देवलका वचन - पुत्रार्तिहरणो वापि स्त्रीधनं भोक्तुमर्हति ( परन्तु ) वृथा दाने च भागे च स्त्रियैदद्यात् स बृद्धिकम् । देवलः दफा ७६१ स्त्रीधनपर विधवाका अधिकार विधवाको अपने स्त्रीधनपर जो वैसा धन यथार्थ में है सब तरहका पूर्ण अधिकार प्राप्त है बृजेन्द्र बहादुरसिंह बनाम जानकी कुंवर 5 I. A. 1; 1 Cal. L. R. 318; और उस जायदादपर जीवनभरका ही अधिकार रहेगा जो उसे उत्तराधिकारमें मिली हो या बटवारे में मिली हो । मगर बम्बई स्कूल में ऐसा नहीं होगा। वहां पूरा अधिकार ऐसी जायदाद में भी होगा । कुछ मुक़द्दमों में बम्बई स्कूल के अन्दर माना गया है कि स्थावर, जंगम दोनों क़िस्म की जायदाद विधवा स्त्रीधन होता है, देखो - रामकृष्ण हिन्दूलॉमें अच्छा विवेचन किया गया है । ( २ ) स्त्री - धनकी वरासत नोट - पुरुषकी वरासत के जो नियम हैं वह स्त्रीधनकी जायदाद की वरासत के नहीं हैं। स्त्रीधनका वारिस वही होगा जो स्त्रीके मरनेपर मौजूद हो । अर्थात स्त्रीके मरनेपरही उसकी जायदादका वारिस हो सकता है केवल पैदाइश से नहीं हो सकता, जब किसी पुरुष या स्त्रीको, स्त्रीधनमें हकु पैदा होता है तो वह हक़ पैद इशम़ प्राप्त नहीं होता जैसा कि हिन्दू मुश्तरका खानदान में मौरूसी जायदाद में पैदाइश से होता है | यदि किसी स्त्री के पास कुछ स्त्रीधनकी और कुछ वरासतसे पायी हुई जायदाद हो तो उसके मरनेपर स्त्रीधनकी जायदाद उस स्त्रीके वारिसको मिलेगी, वरासतकी जायदाद पिछले मर्द मालिक के वारिस को मिलेगी । यही फरक स्त्रीधन और वरासत के धनका है ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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