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________________ दफा ७६१-७६३] स्त्री-धन की परासत १३ दफा ७६२ स्त्रीधनकी वरासतका सिद्धान्त ___ स्त्रीको जायदाद या धन जिस जिस तरहसे प्राप्त हुआ हो उसीके अनुसार स्त्रीधनकी वरासत होती है। इस विषयमें भी कुछ शास्त्रोंके बचनोंका आधार लिया जाता है और रिश्तेदारीकी नज़दीकीका खयाल किया जाता है, कुछ हालतोंमें स्त्री वारिसोंको पहिले माना जाता है। मिताक्षराने स्त्रीधनकी वरासतमें आत्मिक लाभका सिद्धान्त नहींमाना और बङ्गाल स्कूलमें भी दूरके रिश्तेदारों के लिये माना है, देखो-गंगाजती बनाम घसीटा 1 All. 46; 49, 50; दासी बनाम विनयकृष्णदेव 30 Cal. 521-527; स्त्रीधन चाहे किसी रूपमें बदल दिया गया हो उसकी वरासत स्त्रीधनके अनुसार होगी। जब किसी स्त्रीका विवाह मान्य रीति पर होता है तो उसका स्त्रीधन उसके पति और सपिण्डोंको मिलता है और जब उसकी शादी अमान्य रीति पर होती है, तो स्त्रीधन स्त्रीके पिता और उसके सम्बन्धियों को मिलता है। किशनदेई बनाम शिवपल्टन L.R. 6 A.557; 90L.C. 358; 23 A.L.J.981. बदचलनीसे वरासत नहीं रुकती-अगर कोई औरत स्त्रीधनकी वरा. सत पहुंबनेके वक्त बदचलन हो या फाइशा होगयीहो तो इस वजहसे उसको ऐसी वरासत की जायदाद मिलने में कोई रुकावट नहीं पड़ेगी, देखो-गंगा । बनाम घसीटा 1 All. 46; 30 Cal. 521; 26 Mad. 509 मुल्ला हिन्दला सन् १९२६ ई० पेज १३७ पैरा ११७. बिन व्याही लड़कीके स्त्रीधनकी वरासतका क्रम .. दफा ७६३ कारी स्त्रीका स्त्रीधन कन्याके विषयमें बौधायनने कहा है किरिक्थं मृतायाः कान्यायाः गृह्णीयुः सोदरास्तदभावे मातुस्तदभावे पितुः। कन्याके धनको भाई, माता पिता क्रमसे लेवें, 'रिक्थ' का यहां पर साधारण अर्थ जायदाद है। यह बात सर्व सम्मत है कि बिन व्याही स्त्रीको चाहे जिस तरहसे धन मिला हो सब स्त्रीधन है, सिवाय उत्तराधिकारकी या बटवारेकी जायदादके, मगर बम्बई प्रान्तमें ऐसी जायदादभी स्त्रीधन मानी गयी है, अन्यत्र नहीं ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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