SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 994
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ७५५] स्त्रीधन क्या है mmaramwrmrrrrrrrwww ~~ (8) सरकारसे प्राप्तधन-सरकारी सनदसे जो जायदाद स्त्रीको मिले और उस पर उस स्त्रीका पूरा अधिकार हो वह स्त्रीधन है और वह जायदाद स्त्रीके वारिसोंको मिलेगी, देखो-ब्रजेन्द्र बहादुरसिंह बनाम जानकी कुंवर 5 I. A. 1; 1 C.L. R. 818. बम्बई और मदरास प्रान्तमें इस तरहपर इनामकी जायदाद जो किसी विवाहिता स्त्रीको मिले वह भी स्त्रीधन है, देखो-सलेम्मा बनाम लछमना रेडी 21 Mad. 100. (१०) खुद कमाया धन -जो धन स्त्रीने विवाहसे पहिले या पीछे अपनी दस्तकारी मेहनत और बुद्धिके द्वारा कमाया हो वह स्त्रीधन है, यह बात बनारस और महाराष्ट्र स्कूलमें मानी गयी है दूसरी जगह नहीं मानी जाती । मेकनाटन हिन्दूला 2 Vol. P. 241. में कहा है कि जो धन स्त्रीने दस्तकारी जैसे सीना, काढ़ना, चित्रकारी आदिसे पैदा कियाहो वह सब स्त्रीधन है । बनर्जी लॉ आफ मेरेज 2 ed. P. 309 भी देखो । बनारस और महाराष्ट स्कूल के सिवा दूसरे स्कूलों में कात्यायनकी बात मानी जाती है। प्राझं शिल्पैस्तुयदित्तं प्रीत्याचैवयदन्यतः भर्नु स्वाम्यं भवेत्तत्र शेषं तु स्त्रीधनं स्मृतम् । कात्यायनः दायभाग कहता है कि 'अन्यत इति पितृ मातृ भर्तृ कुलव्यतिरिक्तात् यल्लब्धं शिल्पेन वा यदर्जितं तत्र भर्तुः स्वाम्यं स्वातन्त्र्यम् अनापद्यपि भर्ता गृहीतु मर्हति, तेन स्त्रियाअपिधनं न स्त्रीधन मस्वातन्त्र्यात्-दायभागः। कात्यायन और दायभागका कहना है कि पति आपदकालमें स्त्रीसे वह सब धन ले जो उसने शिल्प आदिसे, या किसी दूसरे प्रकारसे प्राप्त किया हो लेसकता है, इससे वह स्त्रीधन नहीं है। (११) उत्तराधिकार श्रादिका धन-मिताक्षर में 'श्राद्यच' इस पदके कहनेसे यह अर्थ है कि जो धन स्त्रीको वरासतमें या बटवारे में मिला हो या किसीका धन उसने ज़ब्त कर लिया हो या कहीं पड़ा मिला हो सब स्त्रीधन है। आगे कहा है कि यदि अन्य किसी तरहपर जो प्राप्त किया हो वह भी स्त्रीधन है, देखो-8 Bom H. C. O. C. 244-260. मगर यहां पर यह ध्यान रखना कि ऐसा धन स्त्रीधन नहीं माना जाता; इसमें सन्देह है। 115
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy