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________________ ११२ स्त्री-धन हवां प्रकरण भर्तृदत्त विशेषणात् भर्तृदत्तस्थावरादते अन्यत् स्थावरं देयमेव भवति अन्यथा यथेष्टं स्थावरेष्व पीति विरुध्येत्-दायभागे-अ० ४ ।। नारदका कहना है कि स्थावर जायदादको छोड़कर पति सब कुछ दे सकता है । यही बात दायभागमें कही गयी है-श्रीकृष्णतर्कालङ्कारने दायभाग पर सुबोधिनी टीकामें स्पष्ट कह दिया है कि-- 'स्थावर मात्रेदान निषेध इत्यर्थः' मगर अब यह बात कानूनमें नहीं मानी जाती, देखो--2 Mad. 333; 8 Cal. LR. ४09; I Mad. 281; मु० वधा बनाम विश्वेश्वरदास 6 N. W. P. 279; जो गहने पतिने लेन देन (व्यापार ) के मतलबसे या इस उद्देश से कि उसकी स्त्री उन गहनोंको खास मौकोंपर पहिने तो वह स्त्रीधन नहीं है, देखो-सरकार हिन्दूला 3 ed. P. 365; 6 N. W. P. 279. मिथिला स्कूल-पतिसे प्राप्तहुई भेट पतिकी रजामन्दी परभी काबिल वरासत है किन्तु क़ाबिले इन्तकाल नहीं, सिवाय आवश्यकताके । हितेन्द्रसिंह बनाम रामेश्वरसिंह 4 Pat. 510; 6 P. L. I. 634; 87 I. C. 849; 88 [. C. 142 (2); A. I. R. 1925 Pat. 625. __ पत्नी और पुत्रीको आभूषणोंका दान । हरकिशनदास बनाम सुन्दरीबीबी A. I. R. 1926 Oudh 43. स्त्रीधन प्राप्तिके अन्यमार्ग (८) वह धन जो भेंटोंके तौरपर कुटुम्बी या इष्टमित्र आदि विवाहके बाद स्त्रीको दे वह भी स्त्रीधन है । बीरमित्रोदय, दायभाग, और स्मृतिचन्द्रिका ने ऐसे धनको स्त्रीधन माना है परंतु उसपर पतिका अधिकार भी माना है, क्योंकि वह भेटे वास्तवमें पतिके लिये समझी गयी हैं। बनर्जीके हिन्दूला आफ मेरेज 2 ed. 275 में कहा है कि आम कायदा यही है कि स्त्रीको जो धन उसके कुटुम्बियोंसे मिले-और उसके गहने तथा कपड़े, और दूसरे लोगों से जो भेटे वैवाहिक अग्निके सामने मिले वही उसका स्त्रीधन है, दूसरे किसी समय जो कुछ भेटें आदि उसे दूसरे प्रादमियोंसे मिले या जो धन स्त्री अपनी मेहनत या बुद्धिसे कमाये वह स्त्रीधन नहीं है। ____ किसी हिन्दू द्वारा,अपनी स्त्री और पुत्रीको दिये हुये गहनों (आभूषणों) की भेंट स्त्रीधन है । हरकिशनदास बनाम सुन्दरीबीबी 89 I. C. 424.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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