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________________ ११४ स्त्री-धन [ तेरहवां प्रकरण बीरमित्रोदय, स्त्रीधनकी व्याख्या इस प्रकार करते हैं कि जिस धन या जायदादकी मालिक स्त्री हो वही स्त्रीधन है परन्तु वरासतमें मिली हुई जायदाद स्त्रीधनमें शामिल नहीं मानी गयी। मगर बम्बई में वरासतसे मिली हुई जायदाद स्त्रीधन अवश्य मानी जायगी, देखो-भगवान द्विबे बनाम मीनाबाई 11 M. I. A. 487; 9 W. R. P C.23. ठाकुर देवी बनाम बालकराम 11 M. I. A. 139; 10 W. R. P. C. 4. ___ यद्यपि वरासत या बटवारासे मिली हुई जायदादपर बम्बई स्कूलके अलावा स्त्रीका पूरा अधिकार नहीं होता मगर उस जायदादकी आमदनीपर पूरा अधिकार होता है इसलिये सब स्कूलोंने यह माना है कि ऐसी जायदाद की आमदनी या उस आमदनीकी बचतसे दूसरी कोई खरीदी हुई अथवा रेहन रखी हुई जायदाद सब स्त्रीधन है। देखो-33 Cal. 315; 10 C.W.N.550. (१२) अपने धनसे ली हुई जायदाद श्रादि--अपने रुपयासे जो जायदाद स्त्रीने खरीदी हो या अपने पूर्ण अधिकारमें आई हुई जायदादको बेचकर खरीदी हो या उसके बदले में दूसरी ली हो उसपर उस स्त्रीका पूर्ण अधिकार है और वह जायदाद चाहे स्थावर हो या जंगम, वसीयतनामाके द्वारा या दूसरी तरह जैसा उसका जी चाहे दे सकती है क्योंकि वह स्त्रीधन है देखो28 Mad. 1; 8 Cal. L. R. 304. (१३) कब्ज़ा मुखालिफाना--यानी जो जायदाद बारह वर्षसे ज्यादा कब्जेमें रहने के कारण उस स्त्रीकी होगई हो उसपर उसका पूरा अधिकार है और वह स्त्रीधन है। ऐसी जायदाद स्त्रीके वारिसोंको मिलेगी, देखो-श्याम कुंवर बनाम दाहकुंवर 29 I. A 132; 29 Cal. 664; 4 Bom. L. R. 547; 22 I. A.25%3 22 Cal. 445%; 25 All. 435% 23 All. 448;33 All. 312 10 Bom. L. R. 216; 23 Cal. 942; 2 C. W. N. 861. (१४) सौदायिक-यह वह धन या जायदाद है जो स्त्रीको उसका पति या स्त्रीके कुटुम्बी या पतिके कुटुम्बी विवाहके पहिले या पीछे स्त्रीको दें या उसके नाम लिख जाये । इसमें यदि उसके पतिने कोई भूमि दी हो परंतु स्पष्ट यह न कहा हो कि उस भूमिपर उस स्त्रीका पूरा अधिकार है तो ऐसी भूमिके सिवाय और सब सौदायिक जायदाद या धन, स्त्रीधन है। सौदायिक जायदाद या उसके धनके बदले में जो जायदाद हासिलकी जाय वह भी स्त्रीधन है, देखो-वेंकट रामराव बनाम वेंकट सुरैय्याराव 2 Mad 333; 8 Cal. L. R 304. हिन्दू स्त्री अपनी जिन्दगीमें जायदाद अलग करनेका जितना अधिकार रखती है; उसीके अनुसार अपने बाद भी वह अपने वस यतनामे के द्वारा काममें ला सकती है अर्थात् उसकी जिन्दगीमें जो सूरत थी मरने के बाद बदल नहीं जायगी। शास्त्रोंमें इसका वर्णन इस प्रकार है
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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