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________________ हिन्दूलॉ के स्कूलोंका वर्णन [ प्रथम प्रकरण बारहवीं शताब्दी में लिखी गयीथी । इसलिये ऐसा अनुमान होता है, कि जीमू तवाहनका समय तेरहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी के बीचमें है । यह ग्रन्थ बंगाल प्रांत में सर्वोपरि माना जाता है । १८ (२४) दत्तकमीमांसा, दत्तकचन्द्रिका - दत्तकमीमांसाके निर्माणकर्ता हैं नन्द पंडित जो इस समयसे २५० या ३०० वर्ष पहिले हुए थे । इनकी सन्तान अभी उत्तर भारतमें विद्यमान है । दत्तकचन्द्रिकाके कर्ता हैं महामहोपाध्याय कुबेर, इनका समय नन्दपंडितसे पहिलेका है । यह दोनों दत्तकविषयके प्रधान ग्रन्थ हैं। दोनों समस्त भारतमें बराबर माने जाते हैं और जिस जगहपर वे एक दूसरेसे विरुद्ध होते हैं तो मिथिला और बनारस स्कूल में दत्तमीमांसा माना जाता है, मगर बंगालमें ऐसा होनेपर दत्तकचन्द्रिकाकी प्रधानता मानी गयी है । देखो - 12 M. I A. 398,437, 21 All. 460; 22 Mad. 398; 21 All 412, 419; 26I. A. 153, 161; 14 Bom. 249; 17 All 294. दफा १० स्मृति और आचार के विरोध में आचारकी प्रबलता " तत्र श्रुत्योर्विरोधेऽगृह्यमाण विशेषत्वात् द्वयोरपि तुल्यबलवत्त्वम्" एवं स्मृत्योराचारयोरपि विरोधे द्रष्टव्यं तुल्यन्यायत्वात- श्रुतिस्मृत्योर्विरोधे तु श्रुतिर्बलीयसी निरपेक्षत्वात - स्मृत्याचारयोर्विरोधे स्मृतिर्बलीयसी" इति वीरमित्रोदये - चौखंभा संस्कृत सीरीज़ नम्बर १०३ पेज २५ भावार्थ - - यह नियम माना गया है कि, श्रुतियोंके परस्पर विरोध होने में एवं स्मृति और आचारमें विरोध होने में दोनों बराबरके बलवान् हैं । श्रुति और स्मृतिके विरोध होने में श्रुति बलवान् है । स्मृति और आचारके विरोध होने में स्मृति बलवान् है । याज्ञवल्क्यने इस विषयपर कहा है किः- 1 स्मृत्योर्विरोधे न्यायस्तु बलवान् व्यवहारतः अर्थशास्त्रात्तबलवद्धर्मशास्त्रमिति स्थितिः । या०२-२१ अन्तमें इस विवादका निर्णय यह किया गया कि, श्रुति और स्मृतिके विरोधमें तो श्रुति बलवान् है, मगर स्मृति और आचारके विरोधमें आचार । इसका मतलब यह है कि, दो स्मृतियोंके विरोध होनेपर आचार बलवान् होगा, क्योंकि कहा गया है कि 'शास्त्राद्रूढ़िबलीयसी' यानी शास्त्रसे रवाज बलवान् होता है ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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