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________________ दफा ७२३] खर्च पानेका अधिकार आदि पतिब्रता हो यानी व्यभिचारिणी न हो तो वह जायदादके उस हिस्सेसे अपने भरण पोषणका खर्च पायेगी जो उसके पतिको मिला, यही राय मिताक्षरा, दायभाग, व्यवहारमयूख तथा स्मृतिचन्द्रिका की है। यदि पति मर जाय और उसके पुत्र वारिस हों, तो माताकी हैसियतसे उसको भरण पोषण पुत्रों से मिलेगा, देखो दफा ७२६. स्थान--स्त्रीके भरण पोषणका स्थान आमतौरसे उसके पतिका घर है, देखो-सीतानाथ मुकरजी बनाम हेमवती देवी 24 W. R.C. R. 377: 1 Mad. H. C. 375; परंतु यदि पति बिना कारण उसको अपने साथ न रहने दे, स्वयं या उस स्त्रीका अलग रहनाही उचित हो तो वह अलग रह कर भरण पोषणका खर्च लेगी, देखो-9 W. R. C. R. 4753 12 Bom. L. R. 373; 6 B.L.R. App. 85; 14 W. R. C. R. 451; 19 mal. 84; 2Bom. 634; इसके सिवाय दूसरी किसी सूरतमें स्त्री अलग रहकर भरण पोषणके पानेका अधिकार नहीं रखती, देखो-4 C. W. N. 488. ___अधिकार छोड़ना--स्त्री, अपने भरण पोषणके खर्च पानेके हन से पतिको मुक्त नहीं कर सकती, यानी वह स्वयं अपना ऐसा अधिकार नहीं छोड़ सकती, परंतु यदि पति और पत्नीने आपसमें किसी समझौतेसे भरण पोषणके खर्चकी रकम निश्चित करली हो, और यदि वह उचित हो, तो अदालत ऐसे समझौतेको मान लेगी 5 Bom. 92, 103, 107. हनका नष्ट हो जाना-जो स्त्री बिना कारण अपने पति को छोड़ दे तो उसके भरण पोषणका हक नष्ट हो जाता है, देखो--मुरामयालीरंगरामा बनाम रामपाली ब्रह्माजी 31 Mad. 33831 Mad. H. C 375. या उसके (पति) साथ रहनेसे इनकार करे तो भी उसका ऐसा हक्क नष्ट हो जाता है, देखो6 W. R. C. R. 116,9 W. R. C. R. 478. तथा व्यभिचारिणी होनेसे भी नष्ट हो जाता है, राजा पृथ्वीसिंह बनाम राजकुंवर ( 1873 ) I.A. Sup. Vol. P. 203-210; 12 B. L. R. 238, 247; 20 W. R. C. R. 21; 1 Mad. H. C. 379; 19 Mad. 6. यदि स्त्रीने भरण पोषणके खर्च पानेकी डिकरी भी प्राप्त करली हो, या आपसका समझौता होगया हो तो भी व्यमिचारिणी स्त्रीका हक नष्ट हो जाता है, देखो--नवगोपालराय बनाम अमृतमयी दासी 24 W. R. C. R. 428, 26 Bom. 707. जातिच्युत होनेसे किसी स्त्रीका हक नष्ट नहीं होता, Act No. 21 of 1850. महारानी विक्ट्ररिया बनाम मरीमुट्ठ 4 Mad. 243. पतिपर जिम्मेदारी जब वह स्त्रीके साथ निर्दयता करता हो---मुद्दई एक ज़मीदारकी पत्नी है जो कि अपने पति के कितनेही निर्दयताके वर्तावोंके कारण, जैसे कि उसके भोजनमें ज़हरका मिला देना,उसके खिलाफ़ जवाहिरातकी 111
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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