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दफा ६६०-६६१]
स्त्रियोंकी वरासतकी जायदाद
रेहननामेमें साफ बता दिया गया और मुर्तहिनको यह पूर्णतया विदित था कि रकम उसी अभिप्रायके लिये लीगई है--तय हुआ कि दूसरे भावी वारिस को उसके जायज़ होनेका विरोध करनेके लिये, इस वजहसे, कि उसने उसको तामीलके समय अपनी रजामन्दी देदी थी, रुकावट नहीं है, राजगोपालाचारियर बनाम स्वामीरेड्डी 1926 M. W. N.266; 93 I.C. 49, A. I. R. 1926 Mad. 517; 50 M. L. J. 221. दफा ६९१ विधवाके कामोंमें दखल
जबतक यह न दिखाया जाय कि विधवा जिस ढंग से जायदादके साथ व्यवहार करती है उससे जायदाद नष्ट होजानेका भय है या वैसा भय होगया है या रिवर्ज़नर तक जायदाद पहुंचने में भय पैदा होगया है तब तक अदालत विधवाके कामोंमें दखल न देगी, देखो-6 M. I. A. 433.
विधवाके बाद वारिस होनेवाला वैसा दखल देनेकी प्रार्थना करे तो. उसे दिखलाना होगा कि विधवाके किसी कामसे जाययादके बरवाद होनेका भय है और यह कि यदि अदालत मनाहीका हुक्म न देगी तो विधवाके काम से, विधवाके बाद वारिस होनेवालोंका नुकसान होजानेका भय है। सिर्फ यह दिखाना काफी नहीं है कि विधवाने कोई ऐसा दान किया है या जायदाद इस तरह अलगकी है जो कानूनसे बर्जित है-हरीदासदत्त बनाम रामगुनमनीदासी 2 Taylor and Bell 2799 6M. I. A. 433.
बटवारासे जो जायदाद मनकूला विधवाको मिली हो यदि उसके परबाद होनेका भय हो तो अदालत रिवर्जनरोंके स्वार्थकी रक्षाके हेतुसे उस जायदादके विषयमें कुछ प्रबन्ध :कर सकती है-(1903 ) 31 Cal. 2144 8 C. W. N. 11.
एक मामलेमें विधवा एक रक्रमकी हकदार हुई बम्बई हाईकोर्टने रिव. जनरोंके रक्षाके च्यालसे उस रकमको सुरक्षित कर दिया, देखो-गम्भीरमल बनाम हमीरमल 21 Bom. 747.
परन्तु इसीतरहके एक दूसरे मामलेमें कलकत्ता हाईकोर्टने यह माना कि जबतक यह साबित न किया जाय कि विधवा उस रक्रमको खराब कर देगी तबतक विधवा इस बातकी ज़मानत देनेके लिये बाध्य नहीं है कि वह उस रकमको नष्ट नहीं करेगी, देखो-बिन्दवसनी दासी बनाम घलीचन्द सन्त 1 W. R.C. R. 125.
अदालत ऐसी रकमको किसी उचित रीतिसे लगा देनेके लिये हिदायत कर सकती है, देखो-मृणालिनी दासी बनाम अविनाशचन्द्रदत्त (1910) 14 C. W. N. 1024.