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________________ स्त्रियोंके अधिकार [ग्यारहवां प्रकरण यानी अधिकार उस आदमीसे कुछ अधिक है जिसे कोई जायदाद इस शर्तसे मिली हो कि वह उसे अपनी ज़िन्दगीभर केवल भोगे। पुनर्विवाह होनेके बाद कब्ज़ा और मृत्यु-जब कोई हिन्दू विधवा पुनर्विवाहके पश्चात भी अपने पहिले पतिकी जायदाद पर १२ वर्षतक क्राबिज रही, किन्तु उसने वह अधिकार अपनी मौजूदा हैसियतसे नहीं, बल्कि अपने पहिले पति की विधवा की हैसियत से रक्खा, तो उसने उस जायदाद के अपने पहिले पतिके लिये जीवित रक्खा अतएव उसकी सत्य के पश्चात. वह जायदाद उसके पहिले पतिके वारिसको प्राप्तहोगी, उमरावसिंह बनाम पिरथी L. R.GA. 117; 86 I. C. 445; A. I. R. 1925 All. 369. पुनर्विवाहसे दोनोंकी जायदाद मिलना-जिन जातोंमें पतिके भाई के साथ पुनर्विवाहकी प्रथा होती है, उनमें विधवा दोनों भाइयोंकी जायदादकी वारिस होती है, नागर बनाम रवासे L. R. 6 All. 267; 86 I. C. 8935 A. I. R. 1925 All. 440. दफा ६९० विधवाका कर्जा रिवर्ज़नरको पाबन्द नहीं करता विधवा और मुश्तरका खानदानके मेनेजरकी स्थितिमें यह मेद है कि मेनेजर दूसरे कोपार्सनरोंकी मंजूरी बिना कुछ नहीं कर सकता और विधवा स्वयं अपने अधिकारसे कर सकती है जहां तककि कानूनने उसे करनेकी इजाजत दी है, 11 Bom. 320, 324. ___ अगर विधवा किसीके किसी प्रकारके हकको या अपने जिम्मे किसीके कर्जेको स्वीकार करले तो वर्तमान लिमीटेशन लॉ नं० ६ सन् १९०८ की दफा १६ के अनुसार रिवर्जनर अर्थात् विधवाके पश्चात् जायदादका वारिस होने वाला पाबन्द नहीं होता-32 All. 33. विधवाका ऋण-जब किसी विधवाने बहुतसी जायदाद वरासतसे प्राप्त की हो,तो उसे यह अधिकार नहीं है कि वह भावी वारिसोंपर कर्जकी पाबंदी डाले, जब कि वह उस कर्ज को जायदादकी आमदनीसे अदा करसकती हो। किन्तु जब आमदनी उसकी परवरिशके लिये या उन आवश्यकताओंके लिये जो, हिन्दूलॉके अनुसार जायज़हों, काफ़ी न हो, तो परिमित अधिकारी जायदादका इन्तकाल भावी वारिसोंके विरुद्ध करसकता है। एक पुत्रीको, जिसे अपने पिताकी जायदाद वरासतसे प्राप्त हुई है, यह अधिकार नहीं है कि वह उस जायदाद को अपने किसी लड़केकी शादीके लिये मुन्तकिल करे । अन्य परिणाम-एक हिन्दू पिता, अपने किसी पुत्रकी शादी के लिये, पूर्वजोंकी रियासतका इन्तकाल नहीं कर सकता। जब किसी परिमित अधिकारीने, वरासतसे प्राप्त की हुई जायदादको, ऐसे अभिप्राय के लिये, जिसकी पाबन्दी भावी वारिसोंपर नहीं होती, मुन्तकिल किया और वह अभिप्राय
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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