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________________ रिवर्जनर [दसवां प्रकरण एक हिन्दू विधवाने अपने मृत पतिके अलाहिदा भाई तथा दूसरे अला. हिदा मृत भाईके पुत्रोंके साथ एक समझौता किया, जिसके द्वारा उसके पति की जायदाद, उसके भाई तथा मृत भाईके पुत्रों में बांट दीगई और विधवाको ताहयात कुछ रकम सालाना मिलना निश्चित हुा । विधवाकी मृत्युके पश्चात् भाईने मृत भाईके पुत्रोंके खिलाफ जायदादके वापिस मिलने की इस बिनापर नालिशकी कि समझौतेकी उसपर पाबन्दी नहीं है क्योंकि वह उस समय भावी पारिस था. और इन्तकाल केवल भावी वरासत पर हुआ था। तय हुआ कि नालिश खारिज की जाय । भावी वरासतकी आशाका इन्तकाल न हुआ था, बलि जायदादका इन्तकाल हुआ था और उसके कब्जेका भी-पेण्टाकोटा सोमीनायडू बनाम सीतारामय्या 22 L. W. 716. हिन्दू विधवा द्वारा समर्पणके जायज़ होनेके लिये, यह भावश्यक है कि उसने अपना समस्त अधिकार उठा लिया हो और वह केवल भाषी वारिसों में जायदादके बटवारेका ही प्रयन्ध न हो। उसमें भावी वारिसोंमें जायदादके स्टवारेके सम्बन्धमें ऐसी शोंके होनेसे, जिनके कारण उनके उन हिस्सों में, जो उन्हें बतौर भावी वारिसके मिलते फ़र्क पड़ता हो, कोई अनियमता नहीं होती। ऐसी दशामें मामला खानदानी प्रबन्ध समझा जाता है और उसके फरीक इस्टापुलके अनुसार उसकी शों में झगड़ा नहीं कर सकते। जब कोई दत्तक पुत्र जोसन् १८६७ई० में गोद लिया गया था बिना किसी एतराज़के उस की सत्य तक सही दत्तक माना गया.तो अदालत गोदके अधिकारको मानती है-सम्भाशिव शास्त्री बनाम रामास्वामी शास्त्री 86 1. C. 7723 A. 1. R. 1925 Mad. 803; 48 M. L. J. 358. जब कोई हिन्दू विधवा अपने भावी वारिसके साथ इन्तकाल करती है तो वह उसकी मृत्युके पश्चात् उस इन्तकालके खिलाफ एतराज नहीं कर सकती, क्योंकि वह इस्टापुलके अनुसार उस दावेसे गिर जाती है। विधवा द्वारा इन्तकाल करने में भावी वारिसकी रजामन्दी देने और विधवाके साथ साथ भावी वारिसका इन्तकालमें रहने में कोई अन्तर नहीं है। और न भावी वारिसकी मौखिक लिखित या अमली रज़ामन्दी तथा विधवाके साथ दस्ता. वेज़के तस्दीक करने में ही कोई अन्तर है-अमरकृष्ण दे बनाम राजेन्द्रकुमार दे 87 I. C. 790; A. I. R. 1925 A. I. R. Cal. 1205. जब किसी हिन्दू विधवाकी जायदादका भावी वारिस मुन्तकिल अलेह से कीमत निश्चित करता, मामलेकी नसीहत करता, और उस इन्तकालसे रज़ामन्दी प्रगट करता है तथा उन तमाम अधिकागेको जो वह खरीदारके पक्षमें रखता है दे देना स्वीकार करता है, तो वह पीछेसे उस दस्तावेज़ इन्तकालके आधारपर जो उसके हकमें अन्तिम पुरुष अधिकारीकी पुत्री द्वारा
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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