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________________ दफा ६७४ ] रिवर्जनरों के अधिकार ८२६ Romwwwwromo नर को भी वसीयत में लिखी जायदादका कुछ हिस्सा दिलाया गया हो तो सीमावद्ध वारिसके मरने पर रिवर्जनर उसका पाबन्द नहीं माना नायना यहां पर यह सिद्धान्त है कि सीमावद्ध वारिसके मरतेही जायदाद रिवर्जनरको पहुंच गयी। अभी तक यह प्रश्न अनिश्चित है कि जब जायदाद ऐसे व्यक्ति के कब्जे में हो जिसका किसी तरहका कोई हक़ उसमें नहीं है और न शास्त्रानुसार उसे पहुंच सकता है तथा रिवर्जनर के हक में इस्टापुलका नियम लागू होता है तो ऐसी दशामें वह जायदाद किसके कजेमें रहे ? कौन उसका वारिस माना जाय ? इस प्रश्नका निश्चय आगे किसी नजीर से हो तो हो मगर इस समय हमारे सामने कोई ऐसी नजीर नहीं है। यह प्रश्न मियादके अन्दरका है यहां पर कब्ज़ा मुखालिफानाका नियम नहीं है हमारी राय में जब ऐसी परिस्थिति हो तो रिवर्जनर के नीचे की लाइन अर्थात् उसके बादवाले वारिस का हक पैदा हो जाना चाहिये । उत्तराधिकार में एक यह नियम भी है कि अगर शारीरिक अयोग्यता के सबब से वह वारिस नहीं हो सकता तो उसके बाद वाला वारिस माना जाता है। __ जब किसी हिन्दू विधवा और भावी वारिसके बीच ऐसा इकरारनामा हो, जिसके द्वारा विधवा जायदादकी पूर्ण अधिकारिणी मानी गई हो और उसे इच्छानुकूल इन्तकाल करनेका अधिकार प्राप्त हुआ हो,और इकरारनामा के बाद भावी वारिसने जायदादके खरीदारके अधिकारसे इन्कार किया। तय हुआ कि भावी वारिसको इन्कार करनेका अधिकार नहीं है-सतनारा यन साहू बनाम विन्धेशरीप्रसाद 6 L. R. All. 210; 87 I. C. 7875 AM I. R. 1925 All. 453. जब कोई विधवा, उस जायदादको जो कि उसके ताहयात अधिकारमें है, स्पष्टतया कानूनी आवश्यकताके लिये मुन्तकिल करती है और भावी वारिस उस इन्तकालसे रज़ामन्द होते हैं तो यह विदित होता है कि कानूनी आवश्यकता थी-अमरकृष्ण बनाम राजेन्द्र 87 I. C. 7903 A. I. R. 1925 A. I. R. Cal.1205. भावी वारिसकी रजामन्दीके सहित इन्तकाल-रामास्वामी रेड्डी बनाम राजगोपालाचारियर 22L.W.518; (1925) M.W.N.789; A I.B. 1928 Mad.29.विधवाका इन्तकाल-भावी वारिसकी रज़ामन्दी-तस्वीक-इस्टापलं रेटीफिकेशनकी रसीद-नायकमल बनाम मूनूस्वामी मुद्दालियरं 84 I.C. 231; A. I. R. 1924 Mad. 819. भावी वारिस, जिसने हिन्दू विधवाके इन्तकालमें अपनी रजामन्दी ज़ाहिर करदी हो, उस इन्तकालके सम्बन्धमें इस्टापुलके अनुसार एतराज करनेसे असमर्थ है -गुथा वीरा राघवया बनाम रामकोटय्या 23LW.3059 A. I. R. 1926 Mad, 508,
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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