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________________ .५२८ रिवर्जनर . [दसर्वा प्रकरण सूरजपालसिंह जायदादका मालिक हुआ वह करीब तीनसाल बाद सन् १९०६ ई० को मर गया। यह मौजूदा सुकद्दमा सूरजपालसिंहके नाबालिग लड़के की तरफ से उसकी मांको वली करके चलाया गया है मगर तारीख ४ सितम्बर सन्१९१८ई० तक नहीं चलाया गया। हिबा की हुई जायदादके पानेका दावा उनपर कियागया है जिन्हें जायदाद हिबाकी गयीथी। हिवाको नाजायज़ करार देकर दावा किया गया है। मुद्दई कहता है कि हिबा, नाजायज़ दबाव डालकर कराया गया है। कोई कानूनी ज़रूरत न थी इस लिये मुद्दई उसका पाबन्द नहीं है । मुहालेह इन बातोंसे इनकार करता हुआ यह कहता है कि नज़दीकी रिवर्ज़नर सूरजपालासंहने खुशी से मंजूरी दी थी और वह इस लिये अपने हक्क को ( Estopped ) नहीं पा सकता तथा जन उसे हक़ नहीं मिल सकता तो मुद्दई को भी नहीं मिल सकता । मुद्दई अपीलांटकी सबसे जोरदार बहस यह है कि जिस समय सूरजपालसिंहने हिवाके जरियेसे जायदादका इन्तकाल किया था उस समय उसको कोई हक़ जायदाद में नहीं प्राप्त हुआथा इसलिये उसका हक नहीं मारा जासकता (Not Estopped) देखो--अमृतनरायनसिंह बनाम गंगासिंह ( 1917 ) A. L.J 265; 17 A. L. J. 5303 17 A. L. J.66; ( 1919 ) Bom. L. R. 488. (ऊपरके सब मामलों पर विचार करके जज महोदयने आगे कहा) नजीरोंके विचार करने पर हमारी राय यह है कि रिवर्जनर की रजामन्दी आगेके है समय पर उसे पाबन्द करती है। हमारी रायमें सूरजपाल सिंह जायदादका मालिक हुआ, बलराज कुंवर के मरने पर जो उसके साथ हिबा कर चुका था इसलिये सूरजपालसिंह अब वरासतका हक उस जायदाद के पानेका नहीं रखता ( Estopped ) और जब सूरजपालसिंह को हक़ नहीं है तो उसके ज़रिये से उसके लड़के मुद्दईका हक भी बन्द हो गया ( Estopped ) अपील खारिज हुआ। भिन्नभिन्न मामले--अब हम कुछऐसे मामले बताते हैं जिनमें इस्टापुल लागू हुआ किसीमें इक़रारनामा था किसीमें इन्तकाल दस्तावेज पर रजामन्दी दी गई थी किसीमें कोई हिस्सा लिया गया था और किसीमेंबार सुबूत डाला गया था। अगर हम सबका पूरा विवरण दें तो गून्थ बहुत बढ़ जायगा, देखो-66 I. C. 874; 16 All. L. J. 825 ( P. C.); 21 All. L.J. 140; 85 I. C. 509, 1925 Mad. 638. ___ एकयात ध्यानमें रखिये कि अगर रिवर्जनरके बादवाले रिवर्जनरके साथ ऐसी कोई बात हो तो पहला रिवर्जनर उसका पाबन्द नहीं होगा। और अगर पहले रिवर्जनर के हक़ में इस्टापुल लागू हो और वही क्ति उस वक्त भी जीवित हो जब कि सीमावद्ध वारिसने कोई जायदाद दूसरे को दी हो अपने मरने के बाद और वह उसके पहले मर गया हो अथवा सीमावद्ध वारिस ने कोई वसीयतकी हो जिसमें पहले रिवर्जनरने मंजूरी दी हो और उस रिवर्ज
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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