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________________ हिन्दूलॉ के स्कूलोका वर्णन [प्रथम प्रकरण ध्यानमें रखना कठिन मालूम होने लगा इसलिये सब विस्तार कम करके ध्यानमें रखनेके लिये ऐसे सुलभ वाक्य रचनेकी चाल पड़ी जो थोड़ेही अक्षरों में अगाध अर्थ और विषयका बोध कर सकें इन वाक्योंको 'सूत्र' कहते हैं। सूत्र' के मुख्य तीन भाग हैं १ श्रौत सूत्र अर्थात् यज्ञादिके नियम, २ गृह्यसूत्र अर्थात् घरमें विधि-विधान दिन चर्या आदिके नियम और ३ धर्म सूत्र अर्थात् सामाजिक एवं राजकीय नियम । हिन्दूलॉ का मुख्यतः सम्बन्ध धर्मसूत्रोंसे है इनमें हिन्दुओंके सामाजिक कायदों, नियमोंका समावेश किया गया है इन्हींके आधार पर पीछे स्मृति ग्रन्थ लिखे गये जैसे मनु, याज्ञवल्क्य, पराशर आदि । हिन्दूलॉ का विस्तार मुख्यतः स्मृतियोंसे हुआ है। धर्मशान और धर्मसूत्र स्मृतियोंमें मुख्य हैं। यही हिन्दूलॉ के स्वरूप हैं । धर्मसूत्र एक प्रकार वेदोंकी कुन्जी हैं। क्योंकि उनमें वेदोंकी सब बाते बड़े अच्छे क्रमसे एकत्र की हुई हैं । ऐसे सवाल, जैसे-घरके मालिकका क्या कर्तव्यहै ? राजाके कर्तव्यकर्म क्या हैं ? न्याय कैसे करना चाहिये ? उत्तराधिकारके क्या नियम हैं ?--और ऐसेही अन्य विषय धर्मसूत्रोंमें लिखे हैं। धर्मसूत्रोंमें सबसे प्रसिद्ध महर्षि मनुका धर्मसूत्र है, जिसे मनुस्मृति कहते हैं। यह उन्होंने भृगुसे कही थी। पीछे भृगुने उसका प्रचार कियाः-- मनुस्मृति अध्याय १२ श्लोक १२६ इत्येतन्मानवं शास्त्रं भृगुप्रोक्तं पठन्दिजः। भवत्याचारवानित्यं यथेष्ठां प्राप्नुयादतिम् ॥ भृगुके कहे हुए इस मानवशास्त्रको जो द्विज पढ़ता है, वह हमेशा श्राचारवान होता है और मरनेपर यथेष्ठ गतिको प्राप्त होता है (देखो दफा ९--६) ध्यान रहे कि हिन्दुओंकी तरह बौद्धभी मनुस्मृतिको मानते हैं । मनुस्मृतिके बाद, याज्ञवल्क्य, पाराशर, नारद आदि स्मृतियोंका दर्जा है । यह सब महर्षि मनुके बहुत समय पीछे बनी हैं। दफा ४ पुराण श्रुति, स्मृतिके सिवा हिन्दूलॉ का अधार १८ पुराण हैं। हिन्दुओंके और बड़े बड़े राजवंशोंके इतिहास एवं राजधर्म, न्याय, नीतिका गंभीर विज्ञान और अदालतोंमें काम आनेवाली बातें भरी हैं। .. __महाभारत सहित अठारह पुराणोंसेभी हिन्दूलों की उत्पत्ति हुई है। जस्टिस् महमूदने 9 All. 253, 289 गंगासहाय बनाम लेखराज सिंहके मामले
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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