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________________ दफा २-३] हिन्दूलॉ की उत्पत्ति आर्य लोग, तप, योग, यज्ञादि कर्म करते और ईश्वरकी स्तुति किया करते थे। स्तुतिमें जो वाक्य वे पढ़ते थे 'मन्त्र' कहलाते हैं और वेदोंमें वे पाये जाते हैं। वेद उस समयकी संस्कृत भाषामें हैं और उनमें प्राचीन श्रार्योंके प्राकृतिक विचार आदि भरे हैं । जिन मन्त्रों द्वारा वे प्रेम पूर्ण, और मधुर वाणीसे ईश्वरकी स्तुति करते थे उन मन्त्रों को 'सूक्त' कहते हैं । प्रारम्भ कालमें यह सूक्त लिखे हुए न थे। गुरुके मुखसे सुनकर याद किये जाते थे। सूक्तोंमें प्रत्येक विषयका प्राकृतिक गंभीर ज्ञान भरा था और भिन्न भिन्न ऋषि मुनि उनमेंसे किसी एक विषयका एक विशेषज्ञ था । ये सब सूक्त कुछ कालके पश्चात एकत्र किये गये । सब सूक्तोंके समूह का नाम 'संहिता' रखा गया वे सब सूक्त भिन्न भिन्न रूपसे वर्तमान वेदोंमें पाये जाते हैं। यज्ञादि कर्मोमें जब कोई वाद उपस्थित होता था तो यज्ञमें नियत 'ब्रह्मा' उसका फैसला किया करता था । जब वाद-विवाद बहुत ज्यादा बढ़े ता इस विषयके अलग ग्रन्थ रचे गये उनका 'ब्राह्मण' नाम रखा गया। पीछे कुछ ऐसे विषयोंकी चर्चा एकांत स्थानमें जाकर करनेकी पडी तत्सम्बन्धी विज्ञानका नाम 'आरण्यक' पड़ा प्रायः उनमें, ऐसे विषय रहते थे जैसे ईश्वरका रूप क्या है, संसारकी उत्पति कैसे, किस प्रकार हुई और अन्त कैसे, किस प्रकार होता है। मानव धर्म, नीतिधर्म, राजधर्म अदिके क्या नियम हैं। 'आरण्यक' के पीछे उपनिषदोंका नाम पड़ा उपनिषदोंमें विज्ञान मानवधर्म, लोकधर्म आदिका बीज भरा है। ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, वेदकी चारों संहिताएं इन सबको श्रुति अथवा वेद कहते हैं। वेदोंको श्रति कहते हैं--हिन्दूलॉ का मुख्य आधार वेदेही हैं। वेदोंसे प्राचीन भार्योंकी सभ्यता विज्ञान तथा उनके रवाजका बहुत अच्छा परिचय मिलता है मिस्टर गोल्डस्टकर अपने लिटरेरी रिमेन्स नामक ग्रन्थके पेज २७१ में कहते हैं. "लोगेांका यह ख्याल गलत है, कि वेदोंमें जिस हिन्दू समाजका वर्णन है वह चरवाहों और कृषकोंकासा समाज मालूम होता है"। आप कहते हैं कि, ऐसा नहीं है, बल्लि ऋग्वेदकी ऋचाओंमें जिस समाजका वर्णन है, वह बहुतही ऊंचे दर्जेकी सभ्यता रखनेवाला समाज मालूम होता है, क्योंकि इसके वर्णनमें बड़े बड़े नगरों और महा शक्तिशाली नरेशोंका वर्णन है। वेदोंमें कानूनका कम वर्णन है, परन्तु बहुतसी ऐसी बातें उनमें हैं कि, जिनसे कानूनका आधार लिया जा सकता है। दफा ३ स्मृति हिन्दुओंकी प्राचीन पढ़नेकी प्राणाली ज़वानी याद करके उपस्थित रखनेकी थी जब ग्रन्थ बहुत हो गये और विषय ज्ञान विस्तृत हुआ तब सब
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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