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________________ दफा ४-६ ] हिन्दूलों की उत्पत्ति मैं कहा कि “पुराणों का दर्जा या तो श्रुति और स्मृतिके बीचमें है, या इन दोनोंके ठीक बाद है" दफा ५ स्मृतियोंकी टीकाएं स्मृतिओं की टीकाओंसे भी हिन्दूलों की उत्पत्ति हुई है । टीकाओंमें सर्व प्रधान यज्ञेश्वर योगिन् कृत याज्ञवल्क्यस्मृति की टीका मिताक्षरा है । बंगालको छोड़कर यह समस्त भारतमें माना जाता है ( देखो हफा १५ ) हिन्दूधर्मशास्त्र ईश्वरदत्त है । इसलिये राजा स्मृतियों में कही हुई श्राज्ञाओंके अनुसार उनका पालन कराता है । हिन्दूलॉ के प्रयोगोंके सम्वन्धमें राजाका क्या कर्तव्य है, इस विषयमें मनु कहते हैं: मनु अ० ८ श्लोक० ४१ जातिजानपदान्धर्मान् श्रेणीधर्मांश्चधर्मवित् समीक्ष्य कुलधर्मांश्च स्वधर्मं प्रतिपादयेत् जो राजा धर्मशास्त्र जानता है, उसे चाहिये कि सब जातिवालों और सब प्रांतों तथा सब संघों के क़ानूनको जानकर उनके कुलधर्म के अनुसार उसका पालन कराये । सदाचारी लोग और धर्मशास्त्रों के जाननेवाले द्विज, जो श्राचार वर्तते हों वही राजाको क़ानून बनाना चाहिये । किन्तु वह प्रान्तों और परिवारों और जातियोंके रवाजोंके विरुद्ध न हो क्योंकि मनुजीने कहा है कि “प्रमाणानिकुर्वीत तेषां धर्म्यान् यथोदितान् ७-२०३ अर्थात् अपने राज्यके निवासियोंके जो उचित रवाज हों उनको भी राजा क़ानूनके समान बनाये. हिन्दुस्थानकी अदालतों और प्रिवी कौंसिल के जज राजाकी तरफसे सब मुकदमोंका विचार ऊपर कही हुई मनुकी आज्ञाओं के अनुसार करते हैं और उनके फैसले हिंदुओं को वैसाही पाबंद करते हैं जैसे सरकार के दूसरे क़ानून । वे ऐसे मुक़द्दमे नहीं फैसल करते जो दफा ३७ में कहे गये हैं. दफा ६ दूसरी बातें, डाइजेस्ट और क़ानून हिन्दूलॉकी उत्पत्तिके दूसरे ग्रन्थ भी हैं, जैसे डाइजेस्ट, सरकारी क्क़ानून और रवाज | भारत सरकारके कुछ खास क़ानून जिन्होंने हिन्दू को कुछ तब्दील कर दिया है, या उसमें कुछ बढ़ा घटा दिया है निम्नलिखित हैं: -- १ -- ऐक्ट नम्बर २१ सन् १८५० ई० जिसे 'लेक्पलोकी ऐक्ट' या 'फ्रीडम् आबू रिलीजन ऐक्ट' कहते हैं । इस क़ानूनका सिद्धांत यह है कि, 2
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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