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________________ दफा ६२१-६२३ ] सपिण्डों में वरासत मिलने का क्रम दूसरी भिन्न शाखाओंके रिश्तेदारोंके लिये नहीं, जैसे चाचा, या चाचाके लड़के आदि वारिस होने वाले सपिण्डों की संख्या जो मिताक्षरामें साफ तौरपर नहीं बताये गये २२ से ५७ तक होती है (देखो नक्शा दफा ६२४ ) मिताक्षरों में कहा गया है कि - ७४३ 'इत्येवमाससमात्समान गोत्राणां सपिण्डानां धनग्रहणं वेदितव्यम् तेषामभावे समानोदकानां धनसम्बन्धः’ इसी तरहपर ऊपरके सात समान गोत्र वाले सपिण्डों में जायदाद चली जायगी और जब सपिण्ड भी कोई नहीं होवें तो उस समय समानोदकों में जायदाद जायेगी। इसी बचनके आधारपर २२ से ५७ पीढ़ी तक सपिंडका दर्जा मानकर जायदाद पानेके वह अधिकारी क्रमसे माने गये हैं । दफा ६२४ देखो । नोट - ऊपर यह बताया गया है कि सहोदर का हक सौते के से पहिले होता है; मगर ऐसा क्रम क्यों है ? इस सवाल का जबाव सरल नहीं; क्योंकि जिन सिद्धान्तोंपर यह क्रम सपिण्डों के लिये लागू किया गया है वह आपसमें एक दूसरे से जाहिरा विरोधी है यह बात बतायी गयी है कि नजदीकी सपिण्ड दूर के सपिण्ड से पहिले जायदाद पाता है । अब सवाल यह होगा कि नजदीकी सपिण्ड कौन है ? और कौन सपिण्ड किस सपिण्डसे नजदीकी होता है ? इस बातका निर्णय भिन्न भिन्न सिद्धान्तों के अनुसार किया गया है इसलिये जिस जगहपर जो स्कूल माना जाता हो उसके अनुसार नजदीकी सपिण्ड ध्यानमें रखना । वह सिद्धान्त जो नजदीकी और दूरके सपिण्डमें फरक डालते हैं उनका उल्लेख. हम क्रमसे नीचे करते है । दफा ६२३ सपिण्डों की वरासतका पहला सिद्धान्त प्रोफेसर सर्वाधिकारी, डाक्टर जाली, मिस्टर मेन और डाक्टर जोगे' द्रनाथ भट्टाचार्य के अनुसार पहला सिद्धान्त यह है. इन सबने यह माना है कि हर एक भिन्न शाखाकी लाइन तीन पीढ़ियोंमें ठहर जाती है । तीन पीढ़ियों में ठहर जानेका जो सिद्धान्त बताया गया उसको इस तरहपर समझिये कि पहिली प्रधान लाइन नीचेकी तरफ तीन पीढ़ी तक जाती है, पीछे ऊपर प्रधान लाइन में पहिली पीढ़ीकी भिन्न शाखा में (बापकी) तीन पीढ़ी तक। और दूसरी पीढ़ीकी भिन्न शाखामें तीन पीढ़ी तक एवं तीसरी पीढ़ीकी मित्र शाखा में तीन पीढ़ी तक जाती है। इस तरह पर तीन पीढ़ी चारों तरफसे समाप्त हो जाती हैं, इसके पश्चात् फिर वही क्रम वरासतका प्रधान लाइन से शुरू होता है, यानी प्रधान लाइनमें नीचेकी तरफ चौथी, पांचवीं और छठवीं पीढ़ी तक, और पीछे ऊपरकी प्रधान लाइनकी पहिली पीढ़ीमें चौथी, पांचवीं छठवीं पीढ़ी तक और दूसरी पीढ़ीमें चौथी, पांचवीं, छठवीं पीढ़ी तक, एवं तीसरी पीढ़ी
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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