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________________ दफा ६०४] . सपिण्डोमें वरासत मिलनेका क्रम . ७१५ विधवा पुनर्विवाह करनेसे अपनी घरासतको खो देती है इसे 'हारीतने' भी कहा है देखो भा-ब्यभिचारिणी यावद्यावच नियमेस्थिताः . . ... तावत्तस्याभवेद्रव्य मन्यथास्यादिलुप्यते । हारीतस्मृति. हारीत कहते हैं कि, जब तक भार्या अपने नियमों में स्थित रहे और ब्रह्मचारिणी बनी रहे तबतक पतिकी जायदादका उपभोग करे, ऐसीन रहनेसे जायदाद छीन लीजायगी। : (५) बेधर्म विधवा-जय किसी विधवाको पतिकी जायदाद वरासतमें मिली हो उसके बाद अगर वह अपने धर्म में न रहे, यानी हिन्दू नरहे, तोंइस पातसे प्रायः उसके अधिकारमें फरक नहीं पड़ेगा देखो-हिन्दू विधवाओंका पुनर्विवाह करने का कानूना एक्ट १५ सन १८५६ ई० की दफा २, माटुंगिनी बनाम रामरतन 19 Cal. 289. (६) विधवा माकी हैसियत नष्ट नहीं करेगी-विधवा बदचलनीकी वजहसे तो पतिकी जायदाद वरासतमें नहीं पाती, मगर वह अपने पहिले पतिके लड़कों की माकी हैसियत नहीं खो देती इसलिये वह पतिकी विधवाकी हैसियतसे तो पतिकी जायदाद कमी नहीं पायेगी, मगर वह माकी हैसियतसे अपने उन पुत्रों की जायदादके पानेका हक रखती है जो पहिले पतिसे पैदा हुए हों, देखो चामरहारू बनाम काशी 29 Bom. 388; वासापा बनाम रायावा 29 Bom. 91; लक्ष्मण बनाम सेवा 28 Mad. 425. जहांपर विधवाके दूसरी शादी करनेका रवाज है वहांपर अगर कोई विधवा पतिकी जायदादके वारिस बनजानेके बाद दूसरी शादी करले तो भी जायदाद उससे छिन जायगी। इस विषयपर इलाहाबाद हाईकोर्टकी यह राय है कि विधवासे जायदाद ज़रूर छीन लीजायेगी, देखो-मूला बनाम परताप (1910 ) 32 All. 489. दूसरे हाईकोर्टीकी राय कुछ विरुद्ध है। . एक्ट नम्बर १५ सन १८५६ ई० की दफा २ के अनुसार विधवा दूसरी शादी कर लेनेसे अपने पहिले पति की जायदादमेंसे रोटी कपड़ापानेकी मुस्त हक नहीं रहेगी। इलाहाबाद हाईकोर्टने गजाधर बनाम कौसिल्ला ( 1908) 31All. 161 में यह माना कि जहांपर विधवा अपनी कौमकीरसमके अनुसार दूसरी शादी करसकती है और उस क्रोममें दूसरी शादी करना नाजायज़ नहीं माना जाता तो विधवा ऐसी सूरतमें अपने रोटी कपड़ेके पानेका हक्क पहिले पतिकी जायदादमें रखती है। .. (७) दो या ज्यादा विधवायें-जब कोई पति मर जाय और दो या दोसे अधिक विधवाये छोड़े तो यह सब विधवायें पतिकी जायदाद मुश्तरकन्
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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