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________________ उत्तराधिकार हिन्दू विधवाको उस जायदाद के इन्तक़ाल करनेका परिमित अधिकार है जिसेकि उसने बतौर अपने पतिकी वारिसके प्राप्त किया है । वह कोई ऐसा इन्तकाल नहीं कर सकती, जो उसके जीवन के पश्चात् प्रभाव रखता है और वह वसीयतनामे के द्वारा इन्तक़ाल बहुतही कम कर सकती है। मध्य प्रदेश में हिन्दू विधवा अपने पति से प्राप्त मौरूसी जोतकी वसीयत नहीं कर सकती1. शिवदयाल बनाम रामप्रसाद 90 I. C. 247. ७७ नवां प्रकरण - विधवा - नियत मासिक एलाउन्स के एवज़में जायदादका त्याग जो कोर्ट आफवार्डसकी विधवा थी कोर्ट की इजाज़त नहीं हासिलकी गई जायदाद का कोर्टके क़ब्जे में होनेसे ऐसी दशा में त्याग जायज़ नहीं है - बंगाल कोर्ट आफ वार्ड ऐक्ट (बी०सी० सन् १८७६ ई० ) की दफा ६० देखो - मानसिंह बनाम महारानी नवलखपति 53 IA 11; 43 C. L J. 259; ( 1926 ) M. W. N. 332; 7 Pat. L. J. 223; 5 Pat. 290; 94 I. C. 830; A. I. R. 1926 P. C. 2; 50 M. L. J.332 (P. C.). त्याग परवरिश - उसके लिये आदेश- भावी वारिस या किसी अन्य के हमें त्याग और उसका जायज़ होना-अभयपद त्रिवेदी बनाम रामकिंकर त्रिवेदी AIR 1926 Cal. 228 . त्याग -- समस्त जायदादका क्रमशः त्याग एक साथ नहीं जायज़ होना -- मारू बनाम टेसो 24 A. L. J 541. (३) बदचलन विधवा -- बदचलन विधवा अपने पतिकी जायदादके पानेका हक़ नहीं रखती और अगर एक दफा उसे हक़ प्राप्त हो जाय तो फिर बदचलनी की वजेहसे जायदाद उससे वापिस नहीं ली जा सकती । अर्थात् जब बदचलनीकी दशा में उसे पतिकी जायदाद मिलनेका मौक़ा प्राप्त हुआ हो तो उसे जायदाद नहीं मिलेगी और अगर जायदाद मिल जाने के पीछे वह 'बदचलन हो जाय तो उससे बदचलनीकी वजहसे जायदाद नहीं लौटाई जायगी, देखो -- मनीराम बनाम केरी कोलीटानी 5 Cai. 776; 7 I. A.115. सैलाम बनाम चिन्नामल 24 Mad. 441. गङ्गाधर बनाम एलू ( 1912 ) 33 Bom. 138; 2 All. 271. वह विधवा जो कि दुराचारिणी रही हो, किन्तु उसके सम्बन्धमें प्रमाणित किया गया हो कि उसने अपवित्र जीवन त्याग दिया है तो वह केवल परवरिश की अधिकारिणी है--भीखूबाई बनाम हरीबा 49 Bom. 459; 27 Bum. L. R. 13; A. I. R. 1925 Bom. 153. (४) विधवाका पुनर्विवाह-जब किसी विधवाको पतिकी जाददाद प्राप्त होगयी हो और उसके बाद वह अपना दूसरा विवाह करले तो वह जायदाद जो पहिले पतिके मरनेपर उसे मिली है वह विधवासे छीन लीजायगी और वह जायदाद उसके पहिले मृत पतिके वारिसको मिल जायगी; देखो - बसूल जहांन बनाम रामसरन 22 Cal. 589.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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