SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 797
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराधिकार [ नव प्रकरण चौर सरवाइवरशिपके हक़के साथ ( देखो दफा ५५८ ) हासिल करती हैं । ऐसा मानो कि एक हिन्दू अपनी तीन विधवायें गङ्गा, जमुना और तुलसी, को छोड़ कर मरगया। तीनो विधवायें मुश्तरकन् और सरवाइवरशिपके हक़के सम्थ पति की जायदाद लेंगी । और तीनों विधवायें पतिकी जायदादकी आमदनीका बराबर हिस्सा लेनेका हक़ रखती हैं। उन तीनोंमेंसे जब एक विधवा मर जायगी तो उसका हिस्सा बाक़ी दो विधवाओंको मिलेगा इसी तरहपर जब दूसरी विधवा मरेगी तो उसका भी हिस्सा तीसरी विधवाको मिलेगा । और जब आखिरी विधवा मर जायगी तो जायदाद उसके पति के वारिसको मिलेगी । विधवाएं पति की जायदादका बटवारा नहीं करासकर्ती जिससे कि दूसरी विधवाका सरवाइवर शिपका हक़ मारा जाय। विधवायें, अगर आपसमें जायदादका बटवारा करलें कि जिससे उनको बराबर मुनाफा मिलने में सहूलियत रहे तो कर सकती हैं परन्तु आपसी बटवारेसे किसी तरहका नुकसान दूसरे वारिसको पहुंचता हो तो वह नहीं कर सकेंगी, देखो दफा ५०६. १६ जब किसी शामिल शरीक विधवाको जायदादका मुनाफा न मिलता हो ( चाहे वह जिसके पास इन्तजाममें जायदाद है खा जाता हो या दूसरी विधवाऐं न देती हों या और किसी तरहसे न मिलता हो ) तो वह विधवा जिसे मुनाफा नहीं मिलता अदालतमें इस बातकी नालिश करे और अदालतको यह मालूम हो कि विधवाको जायदादका मुनाफा दिलानेके लिये उसके पति से पाई हुई जायदादका बटवारा करना ही योग्य होगा तो अदालत ऐसी डिकरी कर सकती है कि वह विधवा जायदादपर अलहदा क़ब्ज़ा रक्खे और उसका मुनाफा अलहदा हासिल करे लेकिन ऐसी डिकरीसे 'सरवाइवरशिप' का हक़ नहीं टूट जायगा यह बात प्रिवी कौंसिल ने भी मानी है; देखो -- भगवानदीन बनाम मेमाबाई 11 M. I. A. 489; नीलमनी बनाम वधामनी 1 Mad. 290 4 I. A. 212; 34 All 189, रवाज के अनुसार जब एक विधवा दूसरी विधवाकी मृत्युके पश्चात्, उसकी जायदादकी वारिस हो सकती है, तो वह उसके द्वारा किये हुये इन्तकालको भी रद्द करा सकती है। मु० सुरजो बनाम मु० दलेली 7 Lah. I J. 474; 87 I. C. 937; 26 Punj L. R. 269; A. I.R. 1625 Lah, 573. एक हालके मुक़द्दमें में जहांपर कि विधवाने अपने पतिकी छोड़ी हुई जायदादपर अलहदा क़ब्ज़ा रखनेके लिये अदालतमें नालिश की थी प्रिवी कौन्सिल ने वादीके अलहदा क़ब्ज़ा पानेके हक़को मानते हुये यह फरमाया कि 'ऐसा मान लेना कि मुश्तरका जायदाद बट नहीं सकती यह गैर मुमकिन है' देखो -- सुन्दर बनाम पारवती 12 All 51; 16 1. A. 186. इस मुक़दमें में प्रिवी कौन्सिलकी जो यह राय है कि 'मुश्तरका जायदाद बट सकती है' इसका मतलब यह है कि जायदाद सहूलियत के लिये और अलहदा अलहदा मुनाफा
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy