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________________ रिक्थाधिकार अर्थात् उत्तराधिकार नवां-प्रकरण अब हम सर्व साधारण के समझने के लिये एक जरूरी विषय 'रिस्थाधिकार' को लिखते हैं। रिक्थाधिकारको आजकल लोग उत्तराधिकार अकसर कहते हैं यद्यपि उत्तराधिकार शब्द मिताक्षरालॉमें अशुद्ध है किन्तु प्रचलित होनेके कारण हमने उत्तराधिकार ही शब्दका प्रयोग किया है । उत्तराधिकारका अर्थ है 'वरासत' वरासत हिन्दुओं के बटे हुए खानदानमें होती है । प्राचीन हिन्दू धर्म शास्त्रोंके देखनेसे माल्म होता है कि पहिले हिन्दुओंका खानदान शामिल शरीक रहा करता था। जो खानदान वटा न हो उसे मुश्तरका खानदान अथवा शामिल शरीक परिवार कहते हैं (देखो प्रकरण छठवां) यही हालत खानपान और धार्मिक कामोंमें थी । खानपान मुश्तरका और धार्मिक कृत्ये भी मुश्तरकन् होती थी । अग्निहोत्र, श्राद्ध आदिमें भी इस बातका प्रमाण मिलताहै । सब से पहिले हिन्दू परिवार शामिल शरीक रहता था। पीछे से बटवाराकी चाल पैदा हुई और जबसे बटवारेका रवाज चला तभीसे वरासत यानी उत्तराधिकार की पैदाइश हुई, क्योंकि वरासत हमेशा बटे हुए परिवारमें होती है, शामिल शरीक खानदानमें नहीं होती यह बात खूब ध्यान में रहे कि इस प्रकरणमें जहां जहां बरासतका क्रम बताया गया है यद्यपि उसमें नये कानूनके अनुसार संशोधन बड़े विचार से कर दिया गया है तो भी आप एक्ट नं० २ सन १९२९ ई. हिन्दू उत्तराधिकार संशोधक ऐक्टके नियमों को वहांगर भूल न जायं । अर्थात उपरोक्त कानून का यह नियम कि, मृत पुरुषकी जायदाद, दादा के पश्चात और चाचा से पहले लड़के की लड़की, लड़की की लड़की, बहन तथा बहनके लड़केको क्रमानुसार पहुंचती है । इसके बाद वही क्रमहै जो पहले था। ___उत्तराधिकारके विषयके शुरू करनेसे पहिले यह बात जरूरी मालूम पड़ती है कि जो पारिभाषिक शब्द प्रायः इस विषयमें आवें संक्षिप्तमें उनकी सूची प्रथम दी जाय दफा५५८में कुछ ऐसे शब्दोंकी सूची दी है । यह नवां प्रकरण निम्न लिखित ८ भागोंमें विभक्त है (१) साधारण नियम दफा ५५०-५७२ (२) मिताक्षरालॉके अनुसार मर्दोका उत्तराधिकार दफा ५७३-६०५ (३) सपिण्डोंमें वसमत. मिलनेका क्रम दफा ६.३ -१३० (४) समानोदकोंमें वरासत मिलनेका क्रम दफा ६३१-६३२ (५) बन्धुओंमें वरासत मिलनेका क्रम दफा ६३३-६४१ ( ६ ) कानूनी वारिस न होनेपर उत्तराधिकार दफा ६४२ (७) औरतोंकी वरासत दफा ६४३-६५० (५) उत्तराधिकार से वंचित वारिस दफा ६५-६६२.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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